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#JaunpurLive : जातिगत आधारित जनगणना 2021 पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी - जाति विहीन समाज की परिकल्पना का क्या होगा ?

#JaunpurLive : जातिगत आधारित जनगणना 2021 पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी - जाति विहीन समाज की परिकल्पना का क्या होगा ?


देश के हर आदमी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आंकलन सिर्फ जनगणना में होता है - 2021 जनगणना में जातिगत गिनती पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत वैश्विक रूप से भारतीय संस्कृति, धार्मिक परिपेक्ष आध्यात्मिकता, धर्मनिरपेक्षता, सबसे बड़ा लोकतंत्र, सशक्तचुनाव आयोग इत्यादि अनेक खूबसूरतीयों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। जबकि भारतीय जनसंख्या करीब करीब 135 करोड़ है, जो विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या के दूसरे नंबर पर है।...साथियों बात अगर हम भारतीय जनगणना की करें तो हर 10 वर्ष में भारत में जनगणना की जाती है जिसमें सामाजिक, आर्थिक स्थिति का भी आंकलन किया जाता है...। साथियों बात अगरहम भारत में जनगणना की शुरुआत की करें तो, देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। लेकिन उस समय फोकस जाति पर नहीं बल्कि शिक्षा, रोजगार और मातृभाषा के सवाल पर हुआ करता था। देश में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे। तब देश की आबादी 30 करोड़ के करीब थी। अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं। हालांकि भारत में आजादी से पहले 1941 में जातियों की गिनती हुई थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के कारण आंकड़ों को संकलित नहीं किया जा सका था।...साथियों बात अगर हम आजादी के बाद की करे तो आजादी के बाद सरकार ने जातिगत जनगणना को नहीं कराने का फैसला किया 1951 में तत्कालीन सरकार के पास भी जातीय जनगणना कराने का दबाव बनाने के लिए एक प्रस्ताव भी आया था। लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री ने यह कहकर उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था कि जातीय जनगणना कराए जाने से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है। स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक की प्रत्येक जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं, लेकिन किसी अन्य जातियों पर नहीं।...साथिया बात अगर हम वर्तमान संसद के मानसून सत्र की करें तो एक सवाल के जवाब में पिछले सप्ताह जब गृह राज्य मंत्री ने संसद को बताया कि भारत सरकार ने नीतिगत फैसला किया है कि जनगणना में एससी और एसटी के अलावा अन्य जाति-वार आबादी की गणना नहीं कराएगी उसके बाद इस पर नई बहस शुरू हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंतत्री और एक केंद्रीय मंत्री  जाति आधारित जनगणना कराने की पैरवी कर रहे हैं, हालांकि केंद्र सरकार अभी इस मुद्दे पर पीछे हट गई है।...साथिया बात अगर हम इस मुद्दे पर विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के सहयोगी पार्टी की करें तो, जाति आधारित जनगणना के लिए बिहार विधान मंडल  और फिर बाद में बिहार विधानसभा में  सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पहले ही पारित हो चुका है। महाराष्ट्र विधानसभा में भी केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल चुकी है। महाराष्ट्र, ओडिशा, बिहार और यूपी में कई राजनीतिक दलों की मांग है कि जाति आधारित जनगणना कराई जाए। इस तरह केंद्र पर जातिगत जनगणना कराने को लेकर दबाव बनाने की कवायद चल रही है। दरअसल जातिगत जनगणना के आधार पर ही सियासी पार्टियों को अपना समीकरण और चुनावी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। सभी पार्टियों की दिलचस्पी अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की सटीक आबादी जानने को लेकर है। अभी तक सियासी पार्टियां लोकसभा और विधानसभा सीटों पर केवल अनुमानों के आधार पर ही रणनीति बनाती रही है। इन राजनीतिज्ञों का तर्क है कि इससे असल मायने में जरूरतमंदों को सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक मदद मिलेगी।...साथियों बात अगर हम 2018 की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी की करें तो 31 अगस्त 2018 को सूचना कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति की करें तो उसमें कहा गया था कि 31 अगस्त, 2018 को, तत्कालीन गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, जिसमें जनगणना 2021 की तैयारियों की समीक्षा की गई। इसमें पहली बारओबीसी का आंकड़ा एकत्र करने की भी बात कही गई थी। तब के मीडिया रिपोर्टों में भी कहा गया कि सरकार ने 2001 की जनसंख्या में ओबीसी का अलग से आंकड़ा एकत्र करने पर चर्चा की है। लेकिन फिर उसके बाद केंद्र सरकार इस मुद्दे पर मौन हो गई दूसरी तरफ देखें तो अभी भले ही गृह राज्य मंत्री ने संसद में यह बयान देकर सरकार का रुख साफ कर दिया है लेकिन केंद्र सरकार ने  एक बार इसकी कोशिश जरूर की थीं।...साथिया बात अगर हम इस मामले की उच्चतम न्यायालय में भी लंबित होने की करें तो, माननीय कोर्ट कई बार कह चुका है कि आरक्षण के बारे में कोई भी फैसला आंकड़ों के बिना कैसे हो सकता है और सरकार को आंकड़ा लेकर आना चाहिए, लेकिन आंकड़ा जुटाने का काम पता नहीं क्यों टाला जाता रहा है।...साथिया बात अगर हम 29 जुलाई 2021 की करें तो माननीय पीएम महोदयके दूरदर्शी नेतृत्व में,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल/डेंटल कोर्स (एमबीबीएस/एमडी/ एमएस/डिप्लोमा/बीडीएस/एमडीएस) के लिए अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) योजना में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदानकरने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया है और साथ ही साथ देश के 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज पांच भारतीय भाषाओं हिंदी, तमिल, तेलुगू, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं। इंजीनियरिंग के कोर्स का 11 भारतीय भाषाओं में ट्रांसलेशन के लिए एक टूल भी डिवेलप किया जा चुका है। गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई शिक्षा नीति पर बोलते हुए यह जानकारी दी। बात अगर हम इस मामले पर एक प्रबुद्धनागरिक के विचारों की करें तो उन्होंने कहा हैं कि जाति आधारित जनगणना संविधान में बाबासाहेब अंबेडकर की जातिविहीन समाज की परिकल्पना के विचार के खिलाफ है और इस सोच को आगे बढ़ाना सामाजिक सद्भाव बनाने के लिए चल रहे प्रयासों को कमजोर करेगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करेंगे तो हम पाएंगे कि जाति आधारित जनगणना पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी हुई है। परंतु हमारी जाति विहीन समाज की परिकल्पना का फिर क्या होगा?? क्योंकि अभी देश के हर नागरिक की सामाजिक आर्थिक स्थिति का आंकलन सिर्फ जनगणना में होता है। परंतु 2021 जनगणना में जातिगत गिनती पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी हुई है परंतु कोरोना महामारी के चलते 2021 की जनगणना का निर्णय फिलहाल प्रलंबित है।
-संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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