हिंदी साहित्य के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव) जी की कालजयी कहानी ईदगाह पर आधारित मेरी ये रचना - संस्कार और ईदगाह !
ईदगाह बड़ी ही ज्ञानपरक कहानी है,
दुनिया आज भी उसकी दीवानी है।
दादी के लिए हामिद ख़रीदा एक चिमटा,
संस्कारवाली बात बच्चों को बतानी है।
चाहता हामिद तो कुछ खिलौने खरीदता,
कुछ ख़ाता मिठाई कुछ दोस्तों को खिलाता।
उसके त्याग में छिपी थी मिट्टी की खुशबू,
बूढ़ी दादी माँ का हाथ जलने कैसे देता।
अब्बाजान और अम्मीजान दोनों नहीं थे,
बीमारी के चलते इस दुनिया से चल बसे थे।
किसी तरह कटती रात किसी तरह कटते दिन,
मगर हामिद से आफतों के होश उड़ते थे।
आंसू बहाना हामिद को गँवारा न था,
अमीना को छोड़ कोई और सहारा न था।
अभागिन अमीना करती तो भी क्या करती,
बच्चे के ऊपर माँ -बाप का साया न था।
कलेजा फट जाता देखकर ऐसे हालात,
मिटकर नहीं डूबने देते संस्कार की लुटिया।
मखमल पर भले सोते होंगे बहुत से लोग,
ख़ाता गरीब आज भी गिन-गिनकर रोटियाँ।
संस्कार- संस्कृति की वो फसल उगाओ,
ज्ञान, शीलवान अपने बच्चों को बनाओ।
चलें वो सदा न्याय और सत्य की डगर,
जमाने की बुरी हवा से हरेक को बचाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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