नया सबेरा नेटवर्क
कभी हमे दिल खोल के हँसाती है।
कभी नल खोल के रुलाती है।
कभी उम्र भर का साथ निभाती हैं।
तो कभी बीच सफर में अकेला छोड़ जाती है l
अगर ये नहीं तो क्या जिंदगी कहलाती है l
कभी चैन की दो स्वांस भी नहीं दे पाती है तो कभी बीच डगर मे ही स्वांस भी छीन जाती है।
कभी हम होते हैं जिंदगी से खुश तो कभी होते हैं नाराज, कभी ये जिंदगी देती है और नहीं देती है खतरे का आगाज,
अगर ये सब नहीं तो क्या जिंदगी कहलाती है l
कभी खुश होकर जी जाते हैं हर एक लम्हे को,
तो कभी अकेला छोड़ जाते हैं होकर नाराज।
इतने तो रंग नहीं होते जितनी ये हमें मुश्किलें दिखाती है। कभी हसते हुए तो कभी रोते हुए हमे इन मुश्किलों से लड़ना सीखा जाती है। आखिर में अजनबी सी चीज़ ही तो जिन्दगी कहलाती है l
ये खुशी और ग़म उम्र भर की यादें बन जाती हैं,
कभी अपनों के बिना तो कभी अपनों के साथ जीना सीखा जाती है।
कभी यही यादें खुश कर जाती हैं,
तो कभी आँखों में गंगा जमुना बहा जाती है,
ये सब नहीं तो क्या जिंदगी कहलाती है l
कुछ कह नहीं पाते इसके बारे में कभी भी अन देखे और अन सुने मोड़ पर खड़ा कर जाती है।
कभी हसते हुए तो कभी रोते हुए कभी जागते हुए तो कभी सोते हुए ,
हमे सब उलझनों से मुक्त करा जाती है l
बचपन से लेकर बुढ़ापे तक जीवन से लेकर मृत्यु तक हर रोज एक नया दिन दिखती है।
कभी सीधी तो कभी उल्टी यही तो जिंदगी कहलाती है l
अंशिका उपाध्याय
सेंट थॉमस कॉलेज
लखनऊ
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