नया सबेरा नेटवर्क
तिरंगा!
मेरा अमर तिरंगा है, मेरा जिगर तिरंगा है।
रग - रग में यही बसता, ऐसा ये तिरंगा है।
मेरी आन तिरंगा है, मेरी शान तिरंगा है,
कोई दुश्मन देखे इसे, दहलाता तिरंगा है।
तेरा भी तिरंगा है, मेरा भी तिरंगा है,
तू नजर उठा के देख, नभ में भी तिरंगा है।
चाँद पे तिरंगा है, मंगल पे तिरंगा है,
दुश्मन को फतह करता, ऐसा ये तिरंगा है।
गोरों को भगाया जो , वो यही तिरंगा है,
महफूज़ रखे ये वतन, ऐसा ये तिरंगा है।
गांधी का तिरंगा है, बिस्मिल का तिरंगा है,
जिसने भी लुटाया लहू उसका भी तिरंगा है।
प्राणों से प्यारा है, ऐसा ये तिरंगा है,
दुनिया से न्यारा है, ऐसा ये तिरंगा है।
हर लब पे उठे जो नाम, ऐसा ये तिरंगा है।
जन -जन के हृदय बसता,ये वही तिरंगा है।
मेरी नजर जहाँ जाती, हर जगह तिरंगा है।
कोई जगह बताए मुझे,जहाँ नहीं तिरंगा है।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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