नया सबेरा नेटवर्क
सिपाही
वतन पऱ जो मिटता है वो है सिपाही,
लिखे इतिहास खून से वो है सिपाही।
हिन्दू है न, मुस्लिम, बस है वो फ़ौजी,
भरा है देश प्रेम से वो है सिपाही।
गरजता है शेर-सा, चले जैसे चीता,
वक्ष से रोके गोली वो है सिपाही।
घाव न लगने दे वो अपनी सरहद को,
पैनी नजर तिरंगे पे, वो है सिपाही।
हँस - हँस के सहता है जो हर दर्द,
बौछार सहे गोली की वो है सिपाही।
कट जाए शीश पऱ न आने दे आँच,
जो रखे ऐसा जज्बा, वो है सिपाही।
इस पावन मिट्टी का करता जो तिलक,
दुश्मन को भेजे श्मशान वो है सिपाही।
मैं ऐसे जवानों का तो हूँ मुरीद,
चुकाये जो कर्ज दूध का वो है सिपाही।
देश पे जो मरता, वो कभी नहीं मरता,
धड़कनें कहें जय हिन्द, वो है सिपाही।
तेरा है न मेरा है, वतन है सबका,
मरे वतन की आन पे, वो है सिपाही।
लहू का हर कतरा जो बोये इंक़लाब,
वो है भारत का लाल, वो है सिपाही।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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