नया सबेरा नेटवर्क
बचपन और बादशाहत
बचपन में
हम अक्सर उड़ाया करते थे
अपनी जहाजें.....
बारिश होते ही.....
पानी की जहाज/नाव भी
हमेशा चलने को तैयार थी....
कौवा ,तोता ,मैना तो
उंगलियों के इशारे पर
उड़ा करते थे......
कभी-कभार हम
हाथी,घोड़ा,गाय, गधे को भी
उड़ा दिया करते थे......
खेल-खेल में और
पल भर में ही ......
राजा,वजीर, सिपाही और
यहाँ तक कि चोर भी बन जाते थे
माँ के लिए हम राजा बेटा ही थे किस्से कहानी की शुरुआत भी
राजा-रानी से .....
सपने में....
राजकुमारी ही आती थी
परियों के देश में.....
हम सैर-सपाटा किया करते थे...
माचिस की खाली डिब्बियों से
धागा जोड़कर........
दूर-दूर के देशों में टेलीफोन किया करते थे
दीवाली की दियली से
तराजू बनाकर ......
दुनिया भर की वस्तुएं
तौल दिया करते थे....
उन दिनों हमें दूध-भात भी
चंदा मामा आकर खिलाते थे
सब की थाली में अपना हिस्सा था
आतुर रहते थे सभी,
बच्चे, बड़े, बूढ़े......
हमारे हाथों के लड्डू-बतासे,
खेल-खिलौनों को पाने को
और हम.....
अपनी इच्छा से
कभी ना ,कभी हाँ करते हुए
मुस्कुरा दिया करते थे
इस "हाँ" और "ना" के समय
हमारी मुस्कान.......!
उनके लिए उपहार होती थी
कभी तीर-धनुष के साथ राम,
कभी मोरपंखी,बांसुरी के साथ
किशन कन्हैया.....और....
कभी मुँह फुलाकर हम खुद ही
हनुमान बन जाते थे.......
सोचिये कितना आसान था
उन दिनों.....
हमारा भगवान भी बन जाना.....!
बचपन पर और क्या लिखे....?
आप खुद ही,
अंदाजा लगा लीजिए
बचपन में हमारी......
अमीरी और बादशाहत का...!
अमीरी और बादशाहत का...!
जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर
जनपद....जौनपुर
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