नया सबेरा नेटवर्क
गाँव में छाया है बाढ़ का पानी,
खेत- खलिहान की डूबी जवानी।
चलकर आया है मानों समंदर,
मेघों ने अपनी भृकुटी है तानी।
बाढ़ से मंगरु की खड़ी हुई खटिया,
नाराज फुलेश्वरी चली गई हटिया।
स्कूल-कॉलेज में भी भर गया पानी,
पानी के कटाव से बह गई पुलिया।
कौन जाए सब्जी का लेने मसाला,
बनिया की दुकान झूल रहा ताला।
बाढ़ की विभीषिका से हरेक डरे,
छत पे कई दिन से अटके हैं लाला।
बारिश होने से डूब गई कश्ती,
पानी में बच्चे खूब कर रहे मस्ती।
बटोर लिया मेघ मेरे आँगन की धूप,
जमीं पर मिट गई कितनों की हस्ती।
बारिश से खोखले हो जाते हैं घर,
शहर की सड़कें ये बनती नहर।
पानी में रहकर भी प्यास से मरते,
चोरी- चोरी बारिश चुराती नजर।
लगता अधूरा यदि बादल न आते,
पहली बारिश में न उसको सताते।
सावन की साजिश से भड़कती न आग,
परिन्दे वहाँ दाना चुगने न जाते।
बादल से अब मैं नया घर बनाऊँगा,
परियों से उन्हें कहानी सुनवाऊँगा।
डालूँगा झूला तब उसके परों पर,
कोई नया मुखड़ा फिर गुनगुनाऊँगा।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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