आग क्यों लगाते हो जमीं से आसमां तक,
धुआँ ही धुआँ फैला जमीं से आसमां तक।
ये पर्वत, ये नदिया, ये बहती ताजी हवाएँ,
क्यों हुई हैं घायल जमीं से आसमां तक।
कभी मिसाइल, कभी ड्रोन से करते हमले,
ये बुलंदी ठीक नही जमीं से आसमां तक।
कर रहे हो इंसानियत का रोज -रोज खून,
क्यों कर रहे भूल ये जमीं से आसमां तक।
तुम भी रहो और औरों को भी तू रहने दो,
मचाओ मत कोहराम जमीं से आसमां तक।
खुदा उन्हें माफ कर दे, जीने नहीं आता,
औरतें नहीं महफूज़, जमीं से आसमां तक।
बे- जबान अब होती जा रही है ये दुनिया,
छीनता जा रहा सुकूँ जमीं से आसमां तक।
नहीं टिकेगा सूरज के आगे मोम का पुतला,
मत जहां को तंग कर जमीं से आसमां तक।
परिन्दे उड़ते हैं तो उड़ने दे फिजाओं में,
मत कमान को तान जमीं से आसमां तक।
धरती के पास सब कुछ,तुम्हें सुख देने के लिए,
फैला हवस का रोग जमीं से आसमां तक।
डरती गाय जैसे कसाई से,क्यों चुप यू.एन.ओ,
बचाव में क्यों न उतरता जमीं से आसमां तक।
बच नहीं पाओगे कोई उसकी अदालत से,
लगाया है राडार वो जमीं से आसमां तक।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/3jNvKbO
0 Comments