नया सबेरा नेटवर्क
मेंरे गाँव का हर मकान
पक्का बन गया है...
ईंट, सीमेंट, कंक्रीट, टाइल्स संगमरमर युक्त....
लोगों ने शहरों में भी
मकान बना लिया है....
कुछ युवाओं ने महानगरों में
फ्लैट्स भी खरीद लिए हैं
और कुछ खरीदने के जुगाड़ में है
साक्षरता दर तो
सौ फीसदी तक पहुँच गई है
और लोग शिक्षित होकर
कमाने चले गए हैं,
और आगे बढ़ने चले गए हैं
शहरों में......
मेंरे गाँव में अब मंडी
सप्ताह में एक बार नहीं लगती
अब महीने में एक बार
मेला भी नहीं लगता है
चट्टी-चौराहे पर रोज ही मेला है
मेंरे गाँव में
इस विकास के नतीजे
कुछ इस प्रकार है
गाँव के स्कूल से बच्चे नदारद...
हरिया काका के साथ
सुट्टा मारने वाला कोई नहीं...
दहला-पकड़, छकड़ी, लूडो,
ट्वेंटी-नाइन खेलने के लिए
चार लोग भी मयस्सर नहीं....
दो जून के भोजन के लिए
चिलम में गाँजा भरने वाले
घीसू-माधव भी गायब
किसान की आत्मा
दो बैलों की जोड़ी सपना हो गई...
भजन-कीर्तन मंडली,भाँड़-मंडली रामलीला कौवाली,विरहा,नौटंकी सब गायब....
तंबाकू-खैनी रगड़ने वाले
उस्ताद भी नहीं....
मंडई उठाने को कौन कहे,
शव को कन्धा देने के लिए भी
अब लोग मिलते नहीं....
हलवाहा और बनिहार
अब भूली बिसरी बात...
जाड़े के दिनों में
रामू काका के साथ
कौड़ा तापने वाला कोई नहीं गुल्ली-डंडा,कबड्डी,पिट्टू ,
गोली- कंचा सब खेल बंद....
बुढ़ापे का प्रेम नाती-पोता भी
भौजाई के साथ परदेस में
कजरी-सोहर,गारी सुनने को
कान तरस गए ...
होली-दिवाली सब सूनी-सूनी
और तो और...
कैसे कहूँ बाटी-चोखा भी
गाँव से शहर चला गया है
सच कहूँ तो,
विकास के इस दौर में.....
मेरा गाँव वीरान सा हो गया है...
मेरा गाँव वीरान सा हो गया है...
रचनाकार ...जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर,जनपद-जौनपुर
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