नया सबेरा नेटवर्क
एक उपवन के हो प्रसून तुम,
गंध को कैसे बाँटोगे?
पूरी धरती एक तुम्हारी,
सूरज कैसे बाँटोगे?
मन को लुभाएँ दिग-दिगंत,
पवन को कैसे बाँटोगे?
चमक रहे जो चाँद -सितारे,
किरन को कैसे बाँटोगे?
अमर शहीदों की ये मिट्टी,
कुर्बानी कैसे बाँटोगे?
पल-पल उठती नदी में लहरें,
लहरें कैसे बाँटोगे?
जले चराग़ मंदिर -मस्जिद,
उजाला कैसे बाँटोगे?
परिंदों का उनपे आके बैठना,
सरहद कैसे बाँटोगे?
गंगा-जमुनी तहजीब हमारी,
उसको कैसे बाँटोगे?
ग़ालिब,तुलसी,सुर,कबीर को,
बोलो कैसे बाँटोगे?
पेड़-पौधे देते ऑक्सीजन,
उसको कैसे बाँटोगे?
इंद्रधनुष वो आँख का तारा ,
उसको कैसे बाँटोगे?
साँस तुम्हारी खुद की नहीं,
कुदरत कैसे बाँटोगे?
अपने बस में कुछ भी नहीं,
क्या -क्या तुम बाँटोगे?
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/3yXVDdt
0 Comments