नया सबेरा नेटवर्क
त्योहारों के बादल उड़ते यहाँ पर,
दुवाओं के दरख़्त उगते यहाँ पर।
देवों की भूमि, संत, पीरों की भूमि,
नारियों को हम सब पूजते यहाँ पर।
ये गंगा, ये यमुना , काशी - बनारस,
संगम पऱ मेले भी लगते यहाँ पर।
मुकुट है हिमालय, चरण धोता सागर,
हरियाली पे सोये वसुंधरा यहाँ पर।
सुन्दर सलोना वो खनिज खजाना,
प्राकृतिक संसाधन हैं भरे यहाँ पर।
जग का शिरोमणि, शहीदों की भूमि,
सभी लड़की -लड़के पढ़ते यहाँ पर।
सुबह जिसकी प्यारी, शाम भी प्यारी,
रातरानी चहुँ ओर गमके यहाँ पर।
वो बहते हैं झरने, ये बहती हवाएँ,
आरती -अजान नित्य करते यहाँ पर।
वो सावन के झूले, वो कजरी के मेले,
होली -दिवाली मिल मानते यहाँ पर।
कण-कण से मोहब्बत,जर्रे-जर्रे में ईश,
ऊँचा पीढ़ा दुश्मन को देते यहाँ पर।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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