नया सबेरा नेटवर्क
बचपन,शिक्षा और हम
बचपन में........
बड़ी मान-मनौअल के बाद
प्राइमरी पाठशाला से
हमारी शिक्षा की शुरुआत होने पर
हम लोग पटरी लेकर स्कूल जाते
उन दिनों.....
स्कूल के रास्ते में ही
अक्सर शुरू हो जाती थी
हम औऱ हमारे मित्रों की....
पटरियों के बीच आपसी लड़ाई
पटरी की मजबूती जानने हेतु....!
इस कारण अमूमन.....
कभी स्कूल पहुँचने से पहले ही
और कभी घर पहुँचने पर
पटरी टूट कर दो भागों में मिलतीं
फिर बिना संकोच के...
पिताजी द्वारा हमारी पीठ की
मजबूती का परीक्षण
जरूर किया जाता था....
पटरियों के दौर से
निकलने के बाद...!
कॉपी-किताब के युग में...
हमें सिखाया जाता था कि
कॉपी-किताब फाड़ने से
विद्या गायब हो जाती है,
याद किया सब भूल जाता है...
फिर भी हमारी किताब-कॉपी
अक्सर फटी ही रहती थीं
एकाध बार तो किताबें फाड़ कर
हमने प्रयोग भी किया,
इसकी सच्चाई जानने को
यह अलग बात है कि
फटने के बाद भी.....
"बीस" तक पहाड़ा,
"सौ" तक गिनती और
"क" से लेकर "ज्ञ" तक वर्णमाला
कुछ भी नहीं भूला....
पर ऐसी हर स्थिति में
पिताजी द्वारा हमारी पीठ की
मजबूती का परीक्षण
जरूर किया जाता था....
स्कूल से वापस घर आने पर
जब कभी हमारे बस्ते में
यार-दोस्तों की कापी-किताबें
भूल बस आ जाती थीं
उन्हें छाँट कर अलग करने के
पिताजी के आदेश पर
फटी-फुटी और
बिना कवर-अखबार वाली को
अलग कर अपनी बताने और
अखबार-कवर चढ़ी किताबों को
अपने यार-दोस्तों की बताने पर
पिताजी द्वारा हमारी पीठ की
मजबूती का परीक्षण
जरूर किया जाता था.....
दोस्तों क्या कहूँ
बचपन तो ऐसे ही हँसते-खेलते,
पिटते -पिटाते बीत गया...
हमें सुधारने का प्रयत्न ....?.
पिताजी का पीठ-परीक्षण...!
आज भी याद है....
पर अफसोस इस बात का है कि
गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में
पटरी से शुरू हुई
हमारी जीवन-यात्रा....
आज भी पटरी पर नहीं आ पाई है
आज भी पटरी पर नहीं आ पाई है
रचनाकार
जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर
जनपद -जौनपुर
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