नया सबेरा नेटवर्क
खेतों में बंदूकें बोकर,
क्रांति का बिगुल बजाये थे।
राजगुरु सुखदेव,भगत सिंह,
दुश्मन को धूल चटाए थे।
तब कांप गई अंग्रेजी सत्ता,
वन्दे मातरम के नारों से।
इंक़लाब की ज्योति जली थी,
ऐसे नये सितारों से।
चमक रहा था नया लहू ये,
लिख रहे थे नई कहानी।
थम-सी गईं दुश्मन की साँसें,
ये ऐसे थे बलिदानी।
बम विस्फोट कर असेंबली में,
खड़े रहे वहीं अकेला।
झूल गए फाँसी के फन्दे,
चिताओं पे लगता मेला।
घायल भारतमाता को जिसने,
अपना शीश चढ़ाया।
अमर रहेगा नाम धरा पर,
गोरों को जिसने भगाया।
नदियों खून बहाकर हमने,
ये आजादी पाई है।
कितनी गोंदी सूनी करके,
अमर ज्योति जलाई है।
क्या लोग थे वो दीवाने,
क्या खूब थी उनकी जवानी।
मादरे वतन पे जो मिटने आता,
लहू से लिखता कहानी।
बना लो चाहे जितनी कोठी,
ये अदब कभी न पाओगे।
राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह,
क्या सोचो बन पाओगे?
बलि- बेदी पर चढ़कर ही,
ऐसा दिन तब आता है।
अमर शहीदों की माँओं की,
झोली में सुख जाता है।
आओ कर लें आज प्रतिज्ञा,
अपने वतन पर मिटने की।
ख्वाब हमारा भी हो पूरा,
अमर तिरंगे में सजने की।
पौरुष को लकवा न मारे,
स्वाभिमान को जगने दो।
भारतमाता के चरणों में,
अपना शीश भी चढ़ने दो।
रामकेश एम. यादव(कवि, साहित्यकार),मुंबई
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