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बच्चों में कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में प्रशासन के साथ सामाजिक संस्थाओं को संगठनात्मक तालमेल, सहयोग कर समस्या को जड़ से मिटाना होगा | #NayaSaberaNetwork

बच्चों में कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में प्रशासन के साथ सामाजिक संस्थाओं को संगठनात्मक तालमेल, सहयोग कर समस्या को जड़ से मिटाना होगा | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
शिशुओं का संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक तथा सामाजिक विकास सुनिश्चित करने जिला प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं द्वारा एमओयू हस्ताक्षर कर देखभाल करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत आज बहुत तेजी के साथ हर क्षेत्र में विकास के नए आयाम छू रहा है। आज भारत का आगाज़ वैश्विक स्तर पर है और हमारे माननीय पीएम 25 सितंबर 2021 को ही चार दिवसीय अमेरिका दौरा पूर्ण कर बहुत बड़ी सकारात्मक उपलब्धि लेकर लौटे हैं जो हमने प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पढ़े सुने हैं।...साथियों हालांकि हम वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। तीव्रता से विकास के नए आयाम प्राप्त कर रहे हैं परंतु हमें भारत में पीड़ित कुपोषण और गरीबी की समस्या पर भी सबको मिलजुल कर उसको जड़ से मिटाना है, हालांकि हमारी नीति बहुत सकारात्मक है। जिसमें अनेक संकल्पों को पूरा करने रणनीतिक रोडमैप बने हैं जैसे 2030 तक भारत को गरीबी को समाप्त करनेका लक्ष्य सरकार ने तय किया है, कोरोना महामारी के कारण 80 लाख़ लोगों तक प्रतिमाह 5 किलो अनाज इत्यादि इस दिवाली तक पहुंचेगा, गरीबी रेखा के नीचे आए व्यक्तियों के लिए योजनाएं इत्यादि सुधारों की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु इन प्रयासों में संरचनात्मक बदलाव की ज़रूरत है। जिसमें कुपोषण मुक्त भारत 2022 और गरीबी समाप्ति भारत 2030 के लक्ष्यों को आसानी से हासिल किया जा सकता है जिसमें मेरा एक सुझाव है कि, बच्चों के कुपोषण की पहचान करने और कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में शासन प्रशासन को जिलास्तर पर सामाजिक संस्थाओं से संगठनात्मक तालमेल व सहयोग कर समस्या को जड़ से मिटा ने के लिए एक जनआंदोलन चलाने की ज़रूरतहै जिसके लिए शिशुओं का संज्ञानात्मक शारीरिक भावनात्मक तथा सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन और सामाजिक संस्थाओंद्वारा एमओक्यू हस्ताक्षर कर तालमेल से देखभाल कर कार्य को गति दी जा सकती है बस!! जरूरत है ज़जबे,जांबाज़ी, ज़वाबदारी,जिम्मेदारी और भावपूर्ण सकारात्मक, सेवाभावी उद्देश्य से काम करने की बस!!! फिर क्या!! एक भारतीय चाहे तो मिट्टी में से भी सोना निकालने की बौद्धिक क्षमता का ज़जबा रखता है!!! बस!! रणनीतिक रोडमैप को हमें मिलकर क्रियान्वयन करना होगा। हमें स्थानीय निकायों सामाजिक संगठनों, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों व सरकारी व निजी कारपोरेट जगत की भी व्यापक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित करने करनी होगी। भारत को महाशक्ति बनाने के लिए कुपोषण को जड़ से खत्म करना होगा और आगामी पीढ़ियों के कुपोषण और उसके चलते, होने वाली बीमारियों से बचा कर भारत को फिर सोने की चिड़िया बनाने की नींव रखी जा सकती है...। साथियों बात अगर हम एक रिपोर्ट की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार, इस रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में करीब 69 करोड़ लोग कुपोषित हैं। वहीं भारत की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है। हालांकि, देश में बाल मृत्यु दर में सुधार हुआ है, जो अब 3.7 प्रतिशत है, परंतु यह दर भी अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक देश में हर दूसरी महिला खून की कमी का शिकार है। भारत लंबे समय से विश्व में सर्वाधिक कुपोषित बच्चों का देश बना हुआ है। यहां हर चौथा बच्चा कुपोषण का शिकार है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक 107 देशों में से केवल 13 देश ही कुपोषण के मामले में भारत से खराब स्थिति में हैं।...साथियों बात अगर हम दिनांक 20 सितंबर 2021 की पीआईबी रिपोर्ट की करें तो,कोयला मंत्रालय के निर्देश पर एनसीएल ने, एक जिले मेंकुपोषण सेसंबंधित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-4) के दौरान पाए गए तथ्यों पर विचार करते हुए एनसीएल ने प्रोजेक्ट फुलवारी आरंभ करने के लिए जिला प्रशासन के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया है। इस मिशन का उद्वेश्य कुपोषण की समस्या तथा नवजातों के शारीरिक तथा मानसिक विकास से संबंधित मुद्वों का समाधान करना है। फुलवारी केंद्रों पर, चिन्हित कुपोषित बच्चों पर यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है कि उनका वजन, शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य मानकों के अनुरूप हों। उनके विकास की निरंतर निगरानी की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाती है। यह पहल कुपोषण के विरुद्ध केंद्र की लड़ाई तथा सतत सामाजिक विकास की दिशा में इसकी प्रतिबद्धता को बढ़ावा देगी। इसके अतिरिक्त, शिशुओं का संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक तथा सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए बच्चों के लिए उनकी आयु के अनुरूप सुरक्षित खिलौने, आरंभिक शिशु देखभाल शिक्षा प्रशिक्षण मॉड्यूल तथा अन्य आत्मविश्वास निर्माण उपाय भी किए जाते हैं। गांवों की आशा कार्यकर्ता बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। फुलवारी केंद्रों पर गांव की ऑक्जिलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम) की सहायता से इन लक्षित बच्चों के लिए समय पर टीकाकरण की व्यवस्था भी की जाती है। एनसीएल की एक सहायक कंपनी जिले में 75 ‘फुलवारी केंद्र‘ आरंभ करने के लिए पूरी तरह तैयार है। वर्तमान में 6 महीने से तीन वर्ष के बीच के लगभग 220 बच्चों की संख्या के साथ 25 केंद्र सफलतापूर्वक चलाये जा रहे हैं। एनसीएल ने इस परियोजना को सफलतापूर्वक चलाने के लिए सीएसआर के तहत 128.86 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। आजादी का अमृत महोत्सव समारोहों के हिस्से के रूप में कंपनी पोषक आहार तथा बच्चों के समग्र विकास सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर रही है। इस समय जब देश राष्ट्रीय पोषण माह 2021 मना रहा है,जिले में कुपोषण कम करने की दिशा में एनसीएल की पहल का महत्व कई गुना बढ़़ जाता है। इस परियोजना के तहत अभी तक 25 महिलाओं सहित कुल 32 लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त हो चुका है जिनमें केंद्रों की संख्याएं बढ़ने के साथ और वृद्धि होगी। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के बच्चों में कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में प्रशासन के साथ सामाजिक संस्थाओं को संगठनात्मक तालमेल सहयोग कर समस्या को जड़ से मिटाना ज़रूरी है। 
संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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