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वैश्विक रूप से भारतीय जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का एहसास कराना जरूरी - विविध क्षेत्रों में व्यापक ज्ञान की आवश्यकता | #NayaSaberaNetwork

वैश्विक रूप से भारतीय जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का एहसास कराना जरूरी - विविध क्षेत्रों में व्यापक ज्ञान की आवश्यकता | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
भारत की विशाल जनसंख्या को विविध क्षेत्रों के ज्ञान, विशेषज्ञता में ढालने रणनीतिक रोडमैप बनाना जरूरी - किशन भावनानी
गोंदिया - भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे क्रमांक पर है और विशेषज्ञों के अनुसार कुछ दशकों में प्रथम क्रमांक पर हो जाएगा। परंतु हम अगर वैश्विक स्तर पर उपलब्धियों की बात करें तो कई क्षेत्रों की कई ऐसी सूचियां है जिसमें हमारा सूची में क्रमांक काफी नीचे होता है और हमारे किसी राज्य की जनसंख्या से भी कम जनसंख्या वाले देशों की सूची में क्रमांक काफी ऊपर होता है। इस विषमता रूपी खाई पर हम सभ नागरिकों को तात्कालिक समाधान कारक चिंतनीय विचार करना जरूरी हो गया है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि बड़ी तीव्र गति से रणनीतिक रोडमैप बनाकर सुधारों के पीछे केंद्र, राज्य सरकारें सकारात्मक कदम उठा रही है, ताकि हम भारतीय जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का लाभ उठा सकें।यह ज़रूरी भी है, क्योंकि जिस तादाद में हमारे देश की जनसंख्या है, हमारी उपलब्धियां उसी अनुरूप होनी चाहिए वैसे तो अनेक सुधारात्मक उपाय हर क्षेत्रों में किए जा रहे हैं परंतु इसका विस्तृत उपाय हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एमईपी) 2020 के माध्यम से हम महसूस कर सकते हैं। जिसका उदाहरण हम शिक्षक दिवस 5 से 17 सितंबर 2021 तक चल रहे शिक्षक पर्व के उपलक्ष में रोज़ हो रहे विभिन्न वेबिनारों के माध्यम से देख रहे हैं, परंतु इसमें जनभागीदारी, सभका जांबाज़ी से सहयोग, क्रियान्वयन में साथ,बहुत ज़रूरी है।... साथियों बात अगर हम 13 दिनों के शिक्षक पर्व में चल रहे विभिन्न वेबिनारों करें तो राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, शिक्षामंत्री सहित अनेक मंत्रियों, सहयोगियों, शिक्षाक्षेत्र से जुड़े अधिकारियों, बुद्धिजीवियों मानव संसाधनों संबंधित सभी पूरी निष्ठा व सहयोग पूर्ण सकारात्मक रूपरेखा और दिशानिर्देश दे रहे हैं...साथियों बात अगर हम 8 सितंबर 2021 को उपराष्ट्रपति द्वाराविश्वविद्यालय मानविकी के उन्नत अध्ययन के वर्चुअल उद्घाटन समारोह में संबोधन की करें तो, उन्होंने स्कूलों में रटकर सीखने की प्रथाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए अभिभावकों से अपील की कि वे छोटी उम्र से ही बच्चों में कला और साहित्य के प्रति जिज्ञासा पैदा करें। विज्ञान और इंजीनियरिंग के शीर्ष राष्ट्रीय संस्थानों में जगह बनाने की दौड़ में, हम भाषाओं और सामाजिक विज्ञान जैसे स्कूलों में आवश्यक विषयों की अनदेखी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषा में कुशल होने से बेहतर सीखने और रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है और अन्य भाषाओं को सीखने में आसानी होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में सक्षम होने के साथ-साथ हिंदी सहित अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे केन्‍द्रों को विविध आवाजों को प्रोत्साहित करके सामाजिक विज्ञान में नवीन अनुसंधान को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सामाजिक विज्ञान के विद्वानों को सामाजिक मुद्दों की बेहतर समझ प्राप्त करने के लिए चिकित्सकों और नीति निर्माताओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने आज विश्वविद्यालयों से अच्छी तरह से विकसित व्यक्तियों को तैयार करने और हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए उच्च शिक्षामें बहु-विषयकता बढ़ाने का आह्वान किया।उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में कई कैरियर प्रक्षेपवक्रों के लिए कर्मचारियों को विविध क्षेत्रों में व्यापक ज्ञान की आवश्यकता होगी। इस संबंध में उदार कलाओं के पुनरुद्धार और एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) पाठ्यक्रमों के साथ उन्‍हें जोड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विभिन्न आकलनों से पता चला है कि कला और सामाजिक विज्ञान के संपर्क से छात्रों में रचनात्मकता, बेहतर आलोचनात्मक सोच, उच्च सामाजिक और नैतिक जागरूकता तथा बेहतर टीम वर्क के साथ-साथ और संवाद कौशल में वृद्धि होती है। उन्‍होंने कहा कि 21वी सदी की अर्थव्‍यवस्‍था में, जहां अर्थव्‍यवस्‍था का कोई भी क्षेत्र अकेले काम नहीं कर सकता, ऐसे गुणों की अत्‍यधिक मांग है। मानविकी की पृष्ठभूमि के छात्रों को नवीनतम प्रौद्योगिकीय बदलावों से अवगत होने के महत्व को भी रेखांकित किया, ताकि वे अपने शोध अध्ययनों में इन प्रगतियों को लागूकर सकें।... साथियों बात अगर हम 7 सितंबर 2021 को शिक्षा पर्व पर माननीय पीएम के संबोधन की करें तो उन्होंने कहा, अनादि काल से भारत में समाज की सामूहिक शक्ति पर भरोसा किया गया है। ये अरसे तक हमारी सामाजिक परंपरा का हिस्सा रहा है। जब समाज मिलकर कुछ करता है, तो इच्छित परिणाम अवश्य मिलते हैं और आपने ये देखा होगा, और देखा हैकि बीते कुछ वर्षों में जन-भागीदारी अब फिर भारत का नेशनल कैरेक्टर बनता जा रहा है। पिछले 6-7 वर्षों में जन-भागीदारी की ताकत से भारत में ऐसे-ऐसे कार्य हुए हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।...साथियों बात अगर हम शिक्षा राज्यमंत्री के शिक्षक पर्वपर दिनांक 8 सितंबर 2021 को एक वेबीनार गुणवत्ता एवं धारणीय स्कूल भारत में स्कूलों से शिक्षण पर संबोधन की करें तो उन्होंने कहा,कि राष्ट्र का विकास शिक्षा पर निर्भर है क्योंकि शिक्षा राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए बच्चों का क्षमता निर्माण जरूरी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षक और बच्चे दोनों एक साथ सीखें, उन्हें स्थानीय कौशल भी सीखना चाहिए और वर्तमान समय में शिक्षा को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए अनुभव आधारित शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि गुणवत्ता और संधारणीयता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस सम्मेलन से जो विमर्श और विचार सामने आएंगे, वे हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को मजबूत करनेके हमारे पीएम के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद करेंगे। अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करेंतो हम पाएंगे कि वैश्विक रूप से भारतीय जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का अहसास कराना अब जरूरी हो गया है। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक ज्ञान की आवश्यकता है क्योंकि भारत की विशाल जनसंख्या को विविध क्षेत्रों में ज्ञान विशेषज्ञता में ढालने एक रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी है जिसका माध्यम हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में संभावना नज़र आ रही है। 
संकलनकर्ता पर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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