नया सबेरा नेटवर्क
प्रीति की रीति सिखाते चलो,
देश को अपने सजाते चलो।
मंगल ही मंगल हो चहुँ ओर,
प्रेम की गंगा बहाते चलो।
देश की सेहत न फीकी पड़े,
नफरत की दीवार गिराते चलो।
देश में पहुँचे घर - घर शिक्षा,
सबको तू साक्षर बनाते चलो।
फौलादी बाँहों में खेले सृजन,
जोश सभी का बढ़ाते चलो।
कहीं न कुम्हलाये कोई सुमन,
मुरझाई कलियाँ हँसाते चलो।
ठहरे न अंधेरा कहीं धरा पे,
दिल का दीया जलाते चलो।
झूमें हरियाली वो जर्रे -जर्रे,
सावन से नभ को सजाते चलो।
मखमली घासों पे सोये धरती,
परिंदों से भी बतियाते चलो।
चूना न लगाए देश को कोई,
ठिकाने उन्हें लगाते चलो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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