संवेदनशील और कमजोर बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपने संबंधी धारा में संशोधन सराहनीय - एड किशन भावनानी
नया सबेरा नेटवर्क
गोंदिया - भारत में संविधान के दायरे में बनाए गए विभिन्न केंद्रीय कानूनों को पास करने की ज़वाबदारी संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा और राज्यों के कानूनों को पास करना की जवाबदारी विधानसभाओं की होती है यह हम सबको मालूम है। साथियों कोई भी कानून केंद्र या राज्यस्तर पर विधेयक के रुप में जब बनाया जाता है तो उस समय की ज़रूरतों, स्थितियों, परिस्थितियों, वक्त की नजाक़त और कठिनाइयों को संज्ञान में लेकर नीति निर्धारकों द्वारा एक लंबी प्रक्रिया के तहत गहन अध्ययन कर बनाया जाता है। फ़िर उस विधेयक को इनमें के पास कराया जाता है। साथियों समय का चक्र चलता रहता है और समय के अनुसार परिस्थितियों, वक्त, वक्त की नजाक़त स्थितियां और सामाजिक वातावरण बदलता रहता है तो उन बनाए गए कानूनों के संशोधन की भी ज़रूरत आन पड़ती है क्योंकि, कोई कानून जब क्रियान्वयन होता है तो उसकी धाराओं के प्रभाव का, बारीकी से पता चलता है कि कितनी कारगर हैं। साथियों न्यायिक प्रक्रिया में हम देखते हैं कि किस तरह कानूनों की धाराओं को इंटरप्रिटेशन करआरगुमेंट किया जाता है, हालांकि भारतीय इंटरप्रिटेशन एक्ट भी बना हुआ है जो इंटरप्रिटेशन का संज्ञान भी देता है और जब शासन-प्रशासन को लगता है कि इन धाराओं में संशोधन की ज़रूरत है या सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के किसी जजमेंट के आधार पर धाराओं में संशोधन करना ज़रूरी हो जाता है, तो इस प्रकार हमें कानूनों में संशोधन की ज़रूरत पड़ती है। साथियों बात अगर हम किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) विधेयक 2021 की करें तो यह विधेयक हाल ही मानसून बजट सत्र में लोकसभा में 24 मार्च 2021 को और राज्यसभा में 28 जुलाई 2021 को पास किया गया था और किशोर न्याय मॉडल नियम 2016 में संशोधन के लिए इस मसौदे पर सभी हितधारकों से सुझाव, टिप्पणियां 11 नवंबर 2021 तक आमंत्रित की गई है जिसमें मुख्य रुप से धारा 61 में संशोधन कर संवेदनशील और कमजोर बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपने संबंधी कानून की धारा में संशोधन करना है। साथियों बात अगर हम महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी इस मसौदे की करें तो पीआईबी की दिनांक 28 अक्टूबर 2021 की विज्ञप्ति के अनुसार संशोधन सूचना के साथ एक 216 पुष्ठों का प्रस्तावित किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) मॉडल नियम 2016 साथ में जोड़ा गया है तथा जिन धाराओं में प्रस्तावित संशोधन है उसे प्रस्तावित कर पीले कलर से डार्क किया गया है ताकि आम नागरिक समझ कर, अध्ययन कर 11 नवंबर 2021 तक अपने सुझाव व टिप्पणियां दिए गए मेल नंबर पर दर्ज़ करा सकते हैं। विज्ञप्ति के अनुसार, संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट सहित जिला मजिस्ट्रेट को किशोर न्याय अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने संबंधी आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है, ताकि मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित किया जा सके और ज़वाबदेही बढ़ाई जा सके। अधिनियम के तहत जिलाधिकारियों को इसके सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयास करने के लिए और अधिक अधिकार दिए गए हैं। अधिनियम के संशोधित प्रावधानों के अनुसार, किसी भी बाल देखभाल संस्थान को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिशों पर विचार करने के बाद पंजीकृत किया जाएगा। जिला मजिस्ट्रेट स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेषीकृत किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों आदि के कामकाज का मूल्यांकन करेंगे। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने व्यवस्था में व्याप्त खामियों को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने देश के बच्चों को बाकी सभी मुद्दों पर प्राथमिकता देने के लिए संसद की प्रतिबद्धता को दोहराया। साथियों बता दें कि किशोर न्याय विधेयक 2021 पहले ही पास किया जा चुका है जिसे 2015 के अधिनियम में संशोधित किया गया था। संसद में इस प्रतिबद्धता को दोहराया गया था कि सभी मुद्दों से ऊपर उठकर भारत के बच्चों को प्राथमिकता देना होगा।सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति हेतु पात्रता मानकों को पुन: परिभाषित किया गया है। फिलहाल कानून के तहत तीन तरह के अपराधों (हल्के‚ गंभीर‚ घृणित) को परिभाषित किया गया है। जिन अपराधों में अधिकतम सजा 7 वर्ष से अधिक कारावास है,लेकिन कोई नयूनतम सजा निर्धारित नहीं की गई है या 7 वर्ष से कम की न्यूनतम सजा प्रदान की गई है‚ उन्हें इस अधिनियम के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के किशोर ने बच्चों की देखभाल और संरक्षण मॉडल नियम 2016 में संशोधन ड्राफ्ट जो जारी किया गया है उसको नवंबर 11 नवंबर 2021 तक सुझाव और टिप्पणियां दी जानी है जिसमें संवेदनशील और कमजोर बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपने संबंधी कानून में संशोधन सराहनीय है।
-संकलनकर्ता लेखक कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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