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“रमेश बिष्ट के शिल्प,भावों के साथ-साथ गतिशील भी हैं” | #NayaSaberaNetwork


“रमेश बिष्ट के शिल्प,भावों के साथ-साथ गतिशील भी हैं” | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
यथार्थ को कलाकारों की नजर से भी देखा जाना चाहिए। 
मूर्तिकार रमेश बिष्ट का रचना संसार प्रकृति की धूपछांही परिवेश में फैला यथार्थ रूप है।  
भारतीय मूर्तिशिल्प की एक समृद्ध परंपरा रही है।
लखनऊ। अस्थाना आर्ट फ़ोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपन स्पसेस आर्ट टॉक एंड स्टूडिओं विज़िट के 19वें एपिसोड का लाइव आयोजन रविवार  को किया गया। इस एपिसोड में आमंत्रित कलाकार के रूप में भारत के जाने माने वरिष्ठ मूर्तिकार श्री रमेश बिष्ट रहे। और इनके साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली से चित्रकार व कला चिंतक जय प्रकाश त्रिपाठी थे। लम्बी बातचीत में शामिल बिष्ट जी ने अंतरग मन से अपने विचारों को बेहद सरलता से साझा किया। 


कार्यक्रम के संयोजक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि जय प्रकाश त्रिपाठी ने कार्यक्रम की सफल सञ्चालन किया और बातचीत के दौरान उन्होंने कहा की आज जब एक मूर्धन्य मूर्तिकार की बात हो रही है तो कलाकार का परिचय कराना भी आवश्यक जान पड़ता है यह और कोई नहीं एक शांति पसंद आधुनिक कला जगत के वरिष्ठ समकालीन मूर्तिकार रमेश बिष्ट हैं। रमेश बिष्ट का जन्म 21 जनवरी 1945 ,लैंसडाउन में हुआ है। मूल रूप से बिष्ट जी लैंसडाउन उत्तराखंड के रहने वाले हैं। काफी लम्बे समय से में नई दिल्ली में रहते हैं और अपने स्थापित आर्ट स्टूडिओं में लगातार कला सृजन कार्य कर रहे हैं। इनकी कला की शिक्षा 1961 - 66 स्कल्पचर , और 1968 - सेरामिक  से कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ से हुई है। मैं उस घटना विशेष का चर्चा करना चाहता हूँ, जब यह कलाकार छोटा सा ही था यानी बचपन के दिन और यह प्राय: अपने घर के आसपास की दीवारों और पेड़ों पर आकृतियां उकेर देता था। यह उस जगह की बात है जहां प्राय: दूर-दूर तक इक्का दुक्का ही इंसान नजर आते थे शेष पशु-पक्षी ही विचरते थे यह जगह थी पौढ़ी गढ़वाल के लैंसडाउन के घने जंगलों के बीच बसा वह गांव जहां सीमित आबादी थी पर भरे पूरे परिवार में जन्म लेने वाला वह व्यक्ति हर दिन की भांति दीवारों पर अपने आस-पास की गतिवधियों को अंकित कर रहा था कि  अचानक इनके सबसे बड़े भाई ने उनको यह करते देख लिया और रमेश को समझाते हुए चित्रकार के जीवन की कठिनाइयों को वर्णित करते चले गये यह बात रमेश बिष्ट के घर कर गयी और उन्होंने भी अपने इस भाई की तरह चित्रकार बनने की ठान ली। इनके बड़े भाई कोई और नहीं बल्कि प्रसिद्ध चित्रकार रणवीर सिंह बिष्ट थे। जब बचपन से ही कोई व्यक्ति अपने इर्द-गिर्द की चीजों को आकार देने लगे तो कला उसके मन मस्तिष्क में बैठ जाती है और समय के साथ-साथ यह ज्ञान मीमांसा विस्तृत आकार भी ले लेती है। समकालीन वरिष्ठ मूर्तिकार बिष्ट जी कहते हैं कि कला की दुनिया में कोई भी अवधारणा या विचारधारा एक सी नहीं रहती यह कला की परिपक्वता से बदलती रहती है जैसे की जब मैं अपने गांव के आस-पास के जानवरों को अंकित करते - करते स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से लखनऊ कला महाविद्यालय गया तो मेरी कला के प्रति अवधारणा बदल गयी और मैं बनने गया था चित्रकार और रास आ गया मूर्तिकार और मूर्तिशिल्प में मेरा कदम आगे बढ़ गया । फिर क्या था दिल्ली आ गया और यहां से कई बार देश-विदेशों की यात्रा की और मेरी अवधारणा के साथ-साथ विचारधारा में भी परिपक्व बदलाव आये।
   यह कुशल मूर्तिकार इस और भी इशारा करते हैं कि जब यथार्थ जगत कला का अंग बन जाता है तो उसे अनेक प्रक्रियाओं और प्रतिक्रयाओं से गुजरना पड़ता है। बिष्ट जी के कहने का अभिप्राय यह है कि यथार्थ को कलाकारों की नजर से भी देखा जाना चाहिए, इस मूर्तिकार का रचना संसार प्रकृति की धूपछांही परिवेश में फैला यथार्थ रूप है। जिसमें गाय, बकरी, बाघ आदि कई तरह के जानवरों और मानव आकृतियों वाले भावों से भरे शिल्प नजर आते हैं । रमेश बिष्ट के शिल्प भावों के साथ-साथ गतिशील होते हैं जो कि उनको सजीव, मर्मस्पर्शी व संजीदा बनाते हैं। यह बात मैनें उनके शिल्पों देखकार महसूस भी की, यही एक परिपक्व चित्रकार और मूर्तिकार की विशिष्टता भी होती है। सुना था आकृतियां बोलती हैं पर रमेश बिष्ट के बोलते शिल्प प्रेक्षक से बात भी करते हैं। समकालीन मूर्तिकार रमेश के बेजुबान जानवरों के गतिशील मूर्तिशिल्प को देखकर दर्शक की आंखें नम हो जाती हैं अत: आप अंदाज लगा सकते हैं कि किस तन्मयता से इनको रचा गया होगा। बिष्ट जी जिस तन्मयता से अपने शिल्पों को आकार देते हुए सजग रहते हैं उतना ही भारतीय मूर्तिशिल्प को लेकर भी काफी सजग हैं एक बातचीत के संदर्भ में वह अजंता एलोरा से लेकर देश-विदेश के कई तरह के मूर्तिशिल्पों के बारे में समझाते हुए बताते हैं कि जहां तक मूर्तिशिल्प का संदर्भ है, भारतीय मूर्तिशिल्प की एक समृद्ध परंपरा रही है और आज भी मूर्तिशिल्प की विविध विधाओं में विविध प्रकार का गंभीर और मूल्यवान काम रचा जा रहा है जो संसार की किसी भी शिल्प परंपरा से तुलनीय है इस संदर्भ में वह एक निवेदन करते हैं कि भारतीय मूर्तिशिल्प का एक आयाम है जो अजंता एलोरा आदि में देखा जा सकता है भारतीय शिल्पकारों ने इसे अपनी समृद्ध परंपरा से, अपने आत्मवादी दर्शन और गहन चिंतन से रचा है। बात को आगे बढ़ाते हुए वह माइकल एंजलो से लेकर कई बहुआयामी कलाकारों का जिक्र करते हुए शिल्पों की स्थुलता, गतिशीलता, सुंदरता और जीवंतता की बारीकियों को बताते हैं उनकी यह ज्ञान मीमांसा उनके कामों में भी परिलक्षित होती है जोकि एक कलाकार के लिए अहम और उपयोगी होती है। अपनी इन्हीं खूबियों से देश-विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले समकालीन आधुनिक वरिष्ठ मूर्तिकार रमेश बिष्ट कोरोना काल में भी लगातार काम करने के लिए कला के प्रति प्रतिबद्ध है। उनके इस काल के काम को जल्द की हम एक बड़ी चित्र प्रदर्शनी में देखेंगे  जिसका कला जगत में व हम सभी को इंतजार भी है। रमेश बिष्ट के कलाकृतियों के एकल एवं सामुहिक प्रदर्शनी भी दर्जनों की संख्या में देश विदेशों में लगाये जा चुके हैं। बनाये गए दर्जनों कलाकृतियों को अनेकों स्थानों पर प्रदर्शित किए गए हैं। इनके कलाकृतियों का संग्रह देश व विदेशों में अनेक प्राइवेट और संस्थाओं में किये गए हैं। साथ ही इन्हें अनेकों पुरस्कार व सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। रमेश बिष्ट की कलाकृतियों की कार्यक्रम के दौरान प्रेजेंटेशन भी किया गया जिसमे बिष्ट के मूर्तिशिल्प के साथ साथ उनके श्याम स्वेत रेखनकन  भी थे जो एक सशक्त रेखांकन लगे। रमेश बिष्ट ब्लैक इंक में इन दिनों सैकड़ों रेखांकन कर रहे हैं। उनका मानना है की एक कलाकार को अपनी निरंतर कला सृजन प्रक्रिया को जारी रखना चाहिए चाहे वह स्केचिंग या रेखांकन ही किउं न हों। कला में रियाज़ की आवश्यकता होती है। रमेश बिष्ट के कुछ मूर्तिशिल्प ज्वलंत मुद्दों पर भी दिखे।







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