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प्रेम का स्वप्न आँसू से नहीं, विशालता और स्नेह से आगे बढ़ाना है | #NayaSaberaNetwork


प्रेम का स्वप्न आँसू से नहीं, विशालता और स्नेह से आगे बढ़ाना है | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
('चलो, प्रेम के सपनों को साकार करें हम' शीर्षक पर काव्य-गोष्ठी का सफ़ल संचालन)
सप्रेम संस्थान के तत्त्वावधान में सप्रेम कवि सभा के अन्तर्गत ऑनलाइन पटल 'ज़ूम' पर आज रात्रि एक भव्य काव्य-गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें पूरे भारत से लगभग 25 कवि व शायरों ने अपने दिल के उद्गार कविता, दोहे,  मुक्तक, तुकान्त एवं ग़ज़लों के माध्यम से व्यक्त किये।
यह काव्य-गोष्ठी मुम्बई के अतुल धवन के अतुकान्त कविता से आरंभ हुई और दिल्ली से प्रगतिशील साहित्य के सम्पादक श्री रामकुमार सेवक के कविता एवं अध्यक्षीय सम्भाषण से सम्पन्न हुई। श्री सेवक जी ने कहा खुली कविता में कहा कि 'प्रेम के स्वप्न को आँसू से नहीं, विशालता और स्नेह से आगे बढ़ाना है, प्रेम  के फूलों से सप्रेम संस्थान को सजाना है'। काव्य-गोष्ठी का शीर्षक था- "चलो प्रेम के सपनों को साकार करें हम"। कार्यक्रम का सफ़ल-संचालन दिल्ली से युवा शायर श्री विवेक रफ़ीक़ एवं श्री अशोक मेहरा जी ने मिलजुल कर किया।
आज़मगढ़ से कवि सूर्यनाथ सरोज ने कहा कि 'कथनी सुन-सुन कान थक गये, करनी पर एतबार करें हम', वाराणसी से रचना त्रिपाठी के अतुकान्त बोल थे- चलो कांटों को हटा, प्रेम से सँवारें इस धरा को'। कोलकाता से ग़ज़लकार श्री कमल पुरोहित ने ग़ज़ल में कहा कि- 'सुख चुके हैं फूल प्रेम के जिनके दिल में, उनके दिल पर प्रेम भरी बौछार करें हम', संस्थान के अध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र पुष्प ने अपनी कविता की पंक्ति थी-'अजी  छोड़ के कीना सबसे प्यार करें हम, , चलो प्रेम के सपनों को साकार करें हम। सागर देहलवी ने कहा कि- सुखमयी जीवन साथ सुखी संसार करें हम। गोवा से श्री कपिल सरोज जी के कविता की पंक्ति थी-'नफरतों को छोड़ के साथी प्यार कर बस प्यार कर, चार दिन की ज़िंदगी न बेवजह बेकार कर'। कोलकाता से  एक और शायर श्री कृष्ण कुमार दूबे ने ग़ज़ल में कहा कि- रखें मन मे सदाशयता, ज़ुबा पर प्रेम की गाथा, करें सम्मान सबका और रखें वश में मन अपना'।
काव्य-गोष्ठी में और भी कवि-जन रितेश कुमार साहिल, डॉ पूनम त्रिपाठी, डॉ राजमणि, प्रीति मगन, अमित नासमझ, अश्वनी ज़तन, रोहित अस्थाना, विनोद कवि, सुरेश मेहरा, आदि ने भी अपनी रोचक कविताएं प्रस्तुत कर ख़ूब समय बांधा। अंत मे सप्रेम संस्थान के कोऑर्डिनेटर धर्मेन्द्र अस्थाना ने सभी कवियों का आभार व्यक्त किया।
परामर्श सत्र - कला हो या साहित्य व्यवहारिक होना चाहिये - सुरेश मेहरा
सप्रेम संस्थान के व्यापक पटल पर ऑनलाइन कला एवं साहित्य का परामर्श सत्र बख़ूबी सम्पन्न हुआ इस परिचर्चा में चार विषय विशेषज्ञ ने व्यापक रूप से अपने अपने विषय पर प्रकाश डाला। दृश्य कला से तीर्थंकर विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय से असिस्टेंट प्रोफेसर अंकुर देव शामिल हुए और अपने विचार विज्ञापन पर प्रस्तुत किया इस सन्दर्भ में उन्होंने कुछ विज्ञापनों के प्रजेंटशन भी प्रस्तुत किया और विज्ञापन के हर कलात्मक पक्ष पर बात की।  उन्होंने कहा की माता पिता को बच्चों को उनके मनपसंद क्षेत्र को चुनने में मदद करनी चाहिए।  ताकि वे उस क्षेत्र में अच्छा कार्य कर सकें।  हालाँकि कला का क्षेत्र थोड़ा संघर्ष भरा है लेकिन पूरी लगन और मेहनत से सफलता अवश्य मिलती है। विज्ञापनों में सन्देश महत्वपूर्ण होता है। उसके बहुत से कलात्मक पक्ष होते हैं जिनका अवश्य ध्यान रखना होता है।  विज्ञापन केवल किसी वस्तु को बेचने के लिए ही नहीं बल्कि लोगों को जागरूक करने के लिए भी विशेष प्रयोग किया जाता है।अंकुर देव ने कला विषय को उठाया और कला के विभिन्न आयामों को विज़ुअल भाव मे प्रस्तुत किया और कला की व्यवहारिकता के महत्व और आवश्यकता सुंदर तरीके से परिभाषित किया।
साहित्य विषय पर नोएडा से जुड़े सुरेश मेहरा ने कहा कि कल हो या साहित्य व्यवहारिक होना चाहिये वर्ना इसका होना न होना है।लोग दूसरों के लिए लिखते हैं जबकी लेखनी स्वयं को सुधारने का एक माध्यम होना चाहिए।जो स्वयं को अच्छा न लगे वो दूसरों को परोसकर हम साहित्य की सेवा कैसे कर सकते हैं। वाराणसी से जुड़े हिंदी के प्रोफेसर डॉ आशीष श्रीवास्तव ने अपने विस्तृत वक्तव्य में गद्य पद्य कथा कहानी निबंध व दोहों आदि विधाओं की व्यवहारिक बारीकियों को उठाया। और कई उदाहरणों से शब्दों के लक्षणा को व्यक्त किया। मुम्बई से जुड़े कपिल सरोज ने शब्दों के चयन और उन्नयन पर प्रकाश डालते हुए साहित्य को सविस्तार व्यवहारिक रंगों को उकेरा। उन्होंने लेखन को बोध का विषय सिद्ध करते हुए लेखनी की कलात्मकता, सम्प्रेषण शैली के विविध आयामों को दर्शाया। अंत मे सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए सप्रेम संस्थान के अध्यक्ष ग़ज़लकार एवं गीतकार प्रोफेसर डॉ पुष्पेंद्र कुमार अस्थाना ने बहुत सरल भाव मे कविता को परिभाषित करते हुए अपनी एक पंक्ति सुनाया - " जीवन के कोरे कागज पर बह बह के नयन बन्द हो गया, क्या बीता है लिखते लिखते कविताओं का ग्रन्थ हो गया"।

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