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#JaunpurLive :बसंत ऋतु में होने वाली एलर्जी और उसकी होम्योपैथिक चिकित्सा -डॉक्टर एम डी सिंह



बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है / बसंत ऋतु हमें ठिठुरती सर्दी और  चिलचिलाती धूप से मुक्त सुखद मौसम का अहसास कराती है लेकिन दूसरी  और इस ऋतू में तमाम तरह के रोग उत्पन्न हो जाते हैं / इस ऋतु में कफ से कुपित होने से खांसी ,सर्दी ,जुकाम ,श्वास , भूख ना लगना ,पेचिश , दस्त और त्वचा सम्बन्धित अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा अगर इनका समय रहते इलाज ना किया जाये तो यह गंभीर रूप धारण कर लेते हैं जिससे जान को भी खतरा पैदा हो सकता है /

बसंत ऋतु में होने वाली एलर्जी के कारक ----: किसी भी एलर्जी का मुख्य कारण तो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक तंत्रों की अति संवेदनशीलता है ।आपके शरीर का कोई भी तंत्र किसी भी खास पदार्थ से अति संवेदनशील हो सकता है। इसके पीछे शरीर के इम्यून सिस्टम का संपर्क में आने वाले किसी भी वाह्य संपर्की चाहे वह पदार्थ हो अथवा अपदार्थ के प्रति असहिष्णु
होना है ।
यहां हम स्वसन तंत्र को आक्रांत करने वाले बासंतिक एलर्जीज का अध्ययन करेंगे जिनसे
सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार
एलर्जीकल राइनाइटिस
साइनोसाइटिस ,सर दर्द ,
ब्रांकियल अस्थमा,यूस्नोफीलिया, 
न्यूमोनिया इत्यादि 
जो मुख्यतः निम्न कारकों द्वारा उत्प्रेरित होते हैं :

1- ऋतु परिवर्तन-- मौसम परिवर्तन का मनुष्य के शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है। घर के भीतर और बाहर के तापमान में ज्यादा अंतर, नम- खुश्क, मद्धिम-तीब्र हवाओं मैं अचानक परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संतुलन बनाने में शरीर को थोड़ा समय लगता है। इसी परिवर्तनशील समय में मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता अव्यवस्थित हो सकती है, जिसके कारण शरीर का कोई भी तंत्र बीमार होकर असंतुलित व्यवहार कर सकता है। जिसमें स्वसन तंत्र के म्यूकस मेम्ब्रेन के स्राव में कमी और बढ़ोतरी एक्यूट कंडीशन पैदा करते हैं। जिससे सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार सर दर्द जैसे लक्षण उत्पन्न होकर आदमी को बीमार कर देते हैं। रहन-सहन में प्राकृतिक संपर्क से दूरी के कारण शहरी कम्युनिटी गांव में रहने वालों की अपेक्षा ऋतु परिवर्तन से कहीं ज्यादा प्रभावित होती है।
ऐसी अवस्था में होम्योपैथिक औषधियों : 

एकोनाइट, आर्सेनिक अल्ब ,ब्रायोनिया, डल्कामारा, एलियम सेपा, लैकेसिस , सल्फर, नेट्रम म्यूर, थूजा, बैसीलिनम ,ऐड्रिलिनम इत्यादि का लक्षण के अनुसार प्रयोग त्वरित स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। किसी भी पैथी की औषधियों से कहीं ज्यादा तेज ।

(तेज ठंडी हवाओं के कारण होने वाले तिब्र सर दर्द में थूजा 1000 के प्रयोग से तुरंत लाभ पाया जा सकता है।)

( रक्त में यूस्नोफिल काउन्ट अधिक हो जाने की अवस्था में एड्रीनलीन 1000 रोज सुबह दोपहर शाम देने पर उसकी संख्या में तेजी से कमी आती है और श्वांस फूलने एवं खांसी में आराम भी तीव्र गति से मिलता है।)

2- वनस्पति, फूल, पत्ती, पराग-- शरद ऋतु में ऋतुकालीन वनस्पतियों को छोड़कर बाकी सब डार्मेंट अवस्था में चली जाती हैं और उनकी गतिविधियां अपने को जीवित रखने तक सीमित हो जाती हैं। बसंत ऋतु में वे भी जागृत होती हैं नए फूल पत्ती पराग के साथ। मनुष्य भी उनकी तरफ आकर्षित होकर बाहर निकल लेता है। और जो इनके संपर्क के प्रति अति संवेदनशील होते हैं एक्यूट ब्रांकियल अस्थमा और साइनोसाइटिस जैसी बीमारियों के प्रकोप से पीड़ित हो जाते हैं। पॉलेन एलर्जी पैदा करने वाली वनस्पतियों में यूकेलिप्टस पार्थेनियम(गाजर घास) और आम प्रमुख हैं। 

होमियोपैथिक औषधियां :

सालिडैगो वर्गा( हर प्रकार की पॉलेन एलर्जी के लिए)
यूकेलिप्टस जी ( यूकेलिप्टस की पॉलेन एलर्जी के लिए)
मैंगीफेरा इंडिका( आम की पाॅलेन एलर्जी के लिए)
ऐंटीपायरिन (पार्थेनियम के पाॅलेन एलर्जी के लिए)
( उपरोक्त औषधियों को हायर पोटेंसी में देना लाभप्रद रहेगा)
(फूलों की एलर्जी को नित्य शहद के सेवन से घटाया जा सकता है ।)

3- गंध-सुगंध -- बसंत ऋतु में नई कोपलों, फूल-पत्तियों की सुगंध और गिरे हुए पुराने पत्तों और उग रहे नये खर- पतवारों के कारण अनेक किस्म के गंध मिले होते हैं। जिनके प्रति असहिष्णुता बहुतों को बीमार करती है। और अनेक रेस्पिरेट्री परेशानियां पैदा होती हैं। जिनमें सर्दी जुकाम, साइनोसाइटिस, सर दर्द, अस्थमा, गंधहीनता और डिसीनिया प्रमुख हैं । होम्योपैथिक औषधियां :

सैंगूनेरिया कैन, सैंगूनेरिया नाइट्रिका, एलियम सेपा, बेलाडोना, जेल्सीमियम, जस्टिसिया अधाटोदा , आसिममस सैंकटम , मेंथा पिपराटा, सल्फर ,इग्नेशिया एवं आर्सेनिक एल्ब इत्यादि प्रमुख हैं।

4- धूल ,धुआँ, कोहरा-- बहुरंगी बसंत के यह तीनों भी अभिन्न अंग हैं। स्वसन तंत्र की एलर्जी में यह तीनों मुख्य भूमिका में रहते हैं। और सर्दी जुकाम, साइनोसाइटिस ,अस्थमा, एफोनिया आदि पैदा करते हैं। होम्योपैथिक औषधियां :

अंब्रोसिया ए 10000 (धूल से होने वाली एलर्जी)
पोथास फोटिडा 200 (धुआँ से होने वाली एलर्जी)
रसटाक्स 1000 (कोहरा से होने वाली एलर्जी)
सल्फर1000( उपरोक्त तीनों से होने वाली एलर्जी)
( इन दवाओं को जल्दी -जल्दी देना ज्यादा लाभप्रद होता है)

5- वायरस ,बैक्टीरिया ,फंगस -- वसंत ऋतु में यह भी अपने उफान पर रहते हैं। जो इम्यून सिस्टम में आई बदलाव के कारण व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। यह अनेक तरह के स्वसन तंत्र की बीमारियों जैसे न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, साइनोसाइटिस, बुखार आदि के लिए प्रमुख भूमिका में होते हैं।
इनकी भी होम्योपैथिक औषधियां अत्यंत कारगर हैं।
आजकल फैले विश्वव्यापी कोरोना वायरस की रोकथाम में होम्योपैथिक औषधियां महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
होम्योपैथिक औषधियां :

एकोनाइट नैप, आर्सेनिक एल्ब, ब्रायोनिया एल्बा, इनफ्लुएंजिनम, मारबीलिनम, न्यूमोकोक्किनम, जेलसीमियम, एसिड हाइड्रोसायनिक, काक्सिनेला, लैकेसिस, यूकेलिप्टस जी, मेन्था पी, डल्कामारा ,हिपर सल्फ इत्यादि ।

ऐस्पाइडोस्पर्मा ,टीनेस्पोरा (गिलोय), जस्टिसिया अधाटोदा (वसाका), आसिमम सैंक्टम (तुलसी) , कुरमकुमा लौंगा(हल्दी) तथा पाइपर नाइग्रा (काली मिर्च) इत्यादि के होम्योपैथिक मदर टिंक्चर भी वायरल एवं बैक्टीरियल संक्रमण में एलर्जी के विरुद्ध मजबूत प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं।

6- इंसेक्ट ,पैरासाइट-- जिस प्रकार मनुष्य बसंत आते ही आह्लाद और स्फूर्ति से भर जाते हैं वैसे ही अन्य जीवो पर भी बसंत का असर होता है। वे भी अपने- अपने छुपने की स्थानों से बाहर निकलते हैं और मनुष्य के संपर्क में आने पर कुछ लोगों में कष्टकर स्वसन तंत्र की एलर्जी उत्पन्न करते हैं। मधुमक्खी, भ्रमर और ततैया
मधु चषक भरे फूलों की ओर आकर्षित होते हैं तो मनुष्य फूलों की तरफ उनके सौंदर्य ,रंग और सुगंध के 
वशीभूत जा पहुंचता है। जहां उपरोक्त में से किसी एक का डंक कभी-कभी किसी-किसी को श्वसनांगों का भयानक शोथ पैदा करता है जिससे सांस लेना ही कठिन हो जाता है। ऐसी अवस्था में लीडम पाल 200, एपिस मेलिफिका 200 या आर्सेनिक एल्ब 200, अथवा ल्यूकास एस्पेरा क्यू के प्रयोग से आराम मिल जाता है।

कुत्तों के बालों में पाया जाने वाला एक पैरासाइट, कुत्तों के साथ खेलते समय कभी-कभी इन्हेल होकर मनुष्य के फेफड़ों में पहुंच जाता है जहां वह एंफिसेमा डेवेलप करता है। जो फेफड़ों का एक कठिन रोग है। उसके लिए एस्पाइडोस्पर्मा, आयडोफॉरमम, लारोसेरेसस, लाइकोपोडियम, सीना और एरानिया डी इत्यादि होम्योपैथिक औषधियों की जरूरत पड़ेगी। 

कुछ पैरासाइट मनुष्य के नाकों में भी अपना घर बना लेते हैं । जिससे निरंतर छींक आना, नाकों का बंद हो जाना, मवाद युक्त स्राव निकलना, नाक से बदबू आना मोटे-मोटे रक्त युक्त खुरण्ड जमना,पालिप बनना सामान्य बात है। जिसके लिए होम्योपैथिक औषधियों ट्युकृयम मेरम वेरम 12, हिप्पोजेनियम 30, लेमना माइनर 30, मर्क साल 1000, कैली आयोडेटम 200 अथवा एरम ट्रिफिलम 200 इत्यादि में से किसी एक की आवश्यकता पड़ सकती है।

7- खुशी और अवसाद-- हर्ष और विषाद दोनों रेस्पिरेट्री ऑर्गन के एलर्जी को उत्प्रेरित कर सकते हैं। बहुत ज्यादा हंसने, रोने, गाने, चिल्लाने से गले में खराश और नाक -आंख से पानी बहना और खांसी उत्पन्न होकर अन्य एनर्जीज को आमंत्रित कर सकते हैं। अत्यधिक खुशी से एक प्रकार की सूडो डिसीडिया उत्पन्न हो सकती है। जिसके लिए इग्नेशिया 200 की आवश्यकता होगी। वैसे ही अवसाद व्यक्ति के इम्यूनिटी को कमजोर कर देता है जिसके लिए ट्यूबरकुलिनम 1000, नेट्रम म्यूर 200, बेराइटा कार्ब 10 एम की एक खुराक की जरूरत पड़ेगी।

8- विशेष खाद्य पदार्थ - बसंत ऋतु में पिकनिक मनाने निकले लोग अनेक किस्म के जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, बेमौसम आइसक्रीम , तीखे चटपटे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं जिनसे सर्दी, जुकाम, खांसी, अस्थमा, गले में खराश, जैसे अनेक रेस्पिरेटरी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं । जिनको नक्स वॉमिका, एलियम सेपा, हिपर सल्फ, ऐंटिम टार्ट, इपिकाक, ब्रायोनिया, पल्साटिला, आर्सेनिक एल्ब, कैप्सिकम एवं मोरगन पी जैसी होमियोपैथिक औषधियों के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है।

(आजकल होमियोपैथिक कंपनियां प्रयोग और रिसर्च के माध्यम से अनेक पेटेंट कंपाउंड तैयार कर रहीं,जो स्वसन तंत्र की एलर्जी में इम्यून बूस्टर का काम कर रही हैं। जिससे होम्योपैथिक चिकित्सा को एक नया आयाम मिल रहा है।)

नोट- होम्योपैथिक औषधियां विभिन्न तरह की एलर्जी से पूर्ण रूप से छुटकारा दिला सकती हैं। किंतु उन्हें होम्योपैथिक चिकित्सक की राय पर ही लिया जाए।

डॉक्टर एम डी सिंह 
महाराजगंज गाजीपुर, यू पी

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