श्यामधनी यादव
पराऊगंज, जौनपुर। ग़ज़ल के चर्चित हस्ताक्षर व संगीतज्ञ एवं प्रसिद्ध तबला वादक, छतरीपुर गड़हर कुटीर चक्के निवासी राय साहब मौर्य 'मधुकर' के निधन से क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
बताते चलें कि स्व. राय क्षेत्र में संगीत की विभिन्न विधाओं की शिक्षा प्रदान करने हेतु अपने निवास स्थान छतरीपुर गड़हर में नाम से संगीतालय का संचालन करते थे जहाँ से गजल गायन के साथ अन्य विधाओं के गायन एवं विभिन्न वाद्य यंत्रों के वादन के क्षेत्र में अनेक प्रसिद्ध कलाकार आज देश-प्रदेश में अपनी छाप छोड रहे है। हसमुख एवं सहज-सरल स्वभाव के धनी राय साहब को लोग गुरु जी के नाम से भी पुकारा करते थे। पराऊगंज परिक्षेत्र में साहित्य और संगीत के एक युग का अंत होने से क्षेत्रीय जनों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।
उनके मित्रों में विक्रमाजीत यादव (गायक एवं हारमोनियम वादक), रामजनम यादव 'शरण' (गजल गायक एवं हारमोनियम वादक) विनोद बावला व गुलाब चंद समेत शिष्यों में दुर्गेश मणि (स्टेज गायक एवं तबला वादक), दीपक विश्वकर्मा (तबला एवं ऑर्गन वादक, विमल यादव (गायक), श्रवण सिंगर, विजय कुमार (नाल एवं पैड वादक), अशोक यादव (प्रधान), पुनीत शुक्ला (नाल वादक) जैसे अन्य शिष्य संगीत के क्षेत्र में आज परचल लहरा रहे है।
गुरु जी गजल विधा के प्रसिद्ध लेखक भी थे। गजल को एक नए रूप में प्रस्तुत करने तथा एक नया रूप प्रदान करने का श्रेय गुरु जी को ही जाता है। ग़ज़ल विधान में इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें से प्रमुख पुस्तकें ग़ज़ल जागरण, पैगाम, काव्य कुंज, जय मधुकर, जय जय सभाजीत इत्यादि हैं। साहित्य एवं संगीत के क्षेत्र का यह सूर्य अब हमेशा-हमेशा के लिए अस्त हो गया। गुरु जी के असामयिक निधन से जहां पूरा परिवार व निकट संबंधी अत्यंत दुखी हैं। वहीं क्षेत्र में भी शोक का माहौल है और लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने द्रवित हृदय से उनके निवास स्थान छतरीपुर गड़हर पहुंच रहे हैं।
पराऊगंज, जौनपुर। ग़ज़ल के चर्चित हस्ताक्षर व संगीतज्ञ एवं प्रसिद्ध तबला वादक, छतरीपुर गड़हर कुटीर चक्के निवासी राय साहब मौर्य 'मधुकर' के निधन से क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
बताते चलें कि स्व. राय क्षेत्र में संगीत की विभिन्न विधाओं की शिक्षा प्रदान करने हेतु अपने निवास स्थान छतरीपुर गड़हर में नाम से संगीतालय का संचालन करते थे जहाँ से गजल गायन के साथ अन्य विधाओं के गायन एवं विभिन्न वाद्य यंत्रों के वादन के क्षेत्र में अनेक प्रसिद्ध कलाकार आज देश-प्रदेश में अपनी छाप छोड रहे है। हसमुख एवं सहज-सरल स्वभाव के धनी राय साहब को लोग गुरु जी के नाम से भी पुकारा करते थे। पराऊगंज परिक्षेत्र में साहित्य और संगीत के एक युग का अंत होने से क्षेत्रीय जनों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।
उनके मित्रों में विक्रमाजीत यादव (गायक एवं हारमोनियम वादक), रामजनम यादव 'शरण' (गजल गायक एवं हारमोनियम वादक) विनोद बावला व गुलाब चंद समेत शिष्यों में दुर्गेश मणि (स्टेज गायक एवं तबला वादक), दीपक विश्वकर्मा (तबला एवं ऑर्गन वादक, विमल यादव (गायक), श्रवण सिंगर, विजय कुमार (नाल एवं पैड वादक), अशोक यादव (प्रधान), पुनीत शुक्ला (नाल वादक) जैसे अन्य शिष्य संगीत के क्षेत्र में आज परचल लहरा रहे है।
गुरु जी गजल विधा के प्रसिद्ध लेखक भी थे। गजल को एक नए रूप में प्रस्तुत करने तथा एक नया रूप प्रदान करने का श्रेय गुरु जी को ही जाता है। ग़ज़ल विधान में इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें से प्रमुख पुस्तकें ग़ज़ल जागरण, पैगाम, काव्य कुंज, जय मधुकर, जय जय सभाजीत इत्यादि हैं। साहित्य एवं संगीत के क्षेत्र का यह सूर्य अब हमेशा-हमेशा के लिए अस्त हो गया। गुरु जी के असामयिक निधन से जहां पूरा परिवार व निकट संबंधी अत्यंत दुखी हैं। वहीं क्षेत्र में भी शोक का माहौल है और लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने द्रवित हृदय से उनके निवास स्थान छतरीपुर गड़हर पहुंच रहे हैं।
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