शुभांशू जायसवाल, जौनपुर। राष्ट्रीय मिर्गी दिवस पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय नईगंज के संचालक और विख्यात मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. हरिनाथ यादव ने मिर्गी (Epilepsy) के बारे में वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने और इस रोग से जुड़े सामाजिक कलंक को समाप्त करने के लिए एक विस्तृत और महत्वपूर्ण जागरूकता संदेश जारी किया है। मिर्गी मस्तिष्क का एक दीर्घकालिक न्यूरोलॉजिकल विकार है जिसकी पहचान बार-बार होने वाले अनियंत्रित दौरों से होती है। डॉ. हरिनाथ स्पष्ट करते हैं कि हमारे मस्तिष्क में न्यूरॉन्स विद्युत संकेतों के माध्यम से संवाद करते हैं। मिर्गी की स्थिति में इन विद्युत संकेतों में अचानक और अस्थायी रूप से गड़बड़ी आ जाती है जिसके परिणामस्वरूप व्यवहार, गति और चेतना में अल्पकालिक बदलाव आता है। यह विकार किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है।
डा. यादव ने बताया कि मिर्गी के कारणों को अक्सर 'संरचनात्मक' और 'आनुवंशिक' श्रेणियों में बांटा जाता है। कारणों में प्रमुख हैं: मस्तिष्क की संरचनात्मक क्षति (जैसे स्ट्रोक, मस्तिष्क ट्यूमर या सिर की गंभीर चोट), संक्रमण (जैसे मैनिन्जाइटिस, एन्सेफलाइटिस या न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस), आनुवंशिक कारक (जो मिर्गी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाते हैं) और चयापचय संबंधी असामान्यताएं (Metabolic Abnormalities)। कई बार बच्चों में जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी या प्रसव के दौरान हुई चोट भी मिर्गी का कारण बन सकती है। यह ध्यान देना आवश्यक है कि लगभग 50% मामलों में विशेषज्ञ भी मिर्गी का कोई स्पष्ट कारण नहीं खोज पाते हैं। सामान्यीकृत दौरे (Generalized Seizures): ये दौरे मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों को एक साथ प्रभावित करते हैं। इसमें टॉनिक-क्लोनिक दौरे सबसे आम हैं जहाँ व्यक्ति अचानक चेतना खोकर, शरीर को अकड़ता है (टॉनिक) और फिर अंगों को झटके देता है (क्लोनिक)। एब्सेंस दौरे (Petit Mal) में व्यक्ति बस कुछ सेकंड के लिए टकटकी लगाता है जो अक्सर बच्चों में देखा जाता है।
डा. यादव ने कहा कि ये दौरे मस्तिष्क के केवल एक हिस्से में शुरू होते हैं। इन्हें चेतना के आधार पर आगे विभाजित किया जाता है: फोकल अवेयर दौरे (Focal Aware) में व्यक्ति होश में रहता है लेकिन शरीर के एक हिस्से में झटके या अजीब भावनाएँ महसूस करता है जबकि फोकल इम्पेयर्ड अवेयरनेस दौरे (Focal Impaired Awareness) में चेतना आंशिक रूप से या पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है। यसमाजिक कलंक को समाप्त करने के लिए भ्रांतियों को दूर करना अत्यंत आवश्यक है। डॉ. हरि नाथ यादव ने निम्नलिखित भ्रांतियों पर प्रकाश डाला। भ्रांति: दौरा पड़ने पर मरीज़ के मुँह में चम्मच, जूता या प्याज देना चाहिए। सत्य: यह बेहद खतरनाक है! मुँह में कुछ भी डालने से गला अवरुद्ध हो सकता है या दाँत टूट सकते हैं।
दौरे के दौरान सही बचाव और प्राथमिक उपचार के बारे में उन्होंने कहा कि दौरे के दौरान मरीज़ को चोट लगने से बचाना ही सबसे महत्वपूर्ण है। प्राथमिक उपचार के लिए ये कदम उठाएँ: शांत रहें और घबराएँ नहीं। व्यक्ति को ज़मीन पर करवट (Recovery Position) में लिटा दें, ताकि साँस लेने का रास्ता साफ रहे।
उनके सिर के नीचे कोई मुलायम वस्तु (जैसे मुड़ा हुआ कपड़ा या जैकेट) रखे।
कसने वाले कपड़े (टाई, कॉलर) ढीले कर दें। कभी भी मुँह में कुछ न डालें, और दौरे को जबरदस्ती रोकने की कोशिश न करें। दौरा खत्म होने तक उनके साथ रहें। मिर्गी का उपचार और प्रबंधन के बारे में कहा कि मिर्गी का इलाज 90% से अधिक मामलों में संभव है और यह लाइलाज नहीं है। उपचार के प्रमुख भाग हैं:
एंटी-एपिलेप्टिक ड्रग्स (AEDs): ये मुख्य उपचार हैं जो दौरों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हैं। सही दवा के चुनाव के लिए विशेषज्ञ से परामर्श आवश्यक है। जीवनशैली प्रबंधन: पर्याप्त नींद लेना, तनाव कम करना और शराब/नशीले पदार्थों से दूर रहना उपचार में महत्वपूर्ण हैं। विशेष उपचार: यदि दवाएँ काम नहीं करती हैं, तो कुछ मामलों में सर्जरी या कीटोजेनिक आहार जैसे विकल्प भी उपलब्ध होते हैं।
डॉ. हरिनाथ यादव ने मिर्गी से पीड़ित और उनके परिवारों को एक सीधा संदेश दिया: "मिर्गी का दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर से सलाह लेने में देरी या खुद से इलाज करने की कोशिश का सीधा असर आपके दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा। अनियंत्रित दौरे मस्तिष्क को स्थायी क्षति पहुँचा सकते हैं और चोट लगने का खतरा बढ़ा सकते हैं। मिर्गी का उपचार संभव है, इसलिए विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करें। साथ ही सामाजिक कलंक के कारण पैदा होने वाले अवसाद और चिंता के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श अवश्य लें। मिर्गी को नज़रअंदाज़ न करें; विज्ञान में विश्वास रखें!" इस अवसर पर अस्पताल के समस्त स्टाफ, प्रतिमा यादव, डॉ. सुशील यादव, मरीज सहित उनके परिजन उपस्थित रहे।
डा. यादव ने बताया कि मिर्गी के कारणों को अक्सर 'संरचनात्मक' और 'आनुवंशिक' श्रेणियों में बांटा जाता है। कारणों में प्रमुख हैं: मस्तिष्क की संरचनात्मक क्षति (जैसे स्ट्रोक, मस्तिष्क ट्यूमर या सिर की गंभीर चोट), संक्रमण (जैसे मैनिन्जाइटिस, एन्सेफलाइटिस या न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस), आनुवंशिक कारक (जो मिर्गी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाते हैं) और चयापचय संबंधी असामान्यताएं (Metabolic Abnormalities)। कई बार बच्चों में जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी या प्रसव के दौरान हुई चोट भी मिर्गी का कारण बन सकती है। यह ध्यान देना आवश्यक है कि लगभग 50% मामलों में विशेषज्ञ भी मिर्गी का कोई स्पष्ट कारण नहीं खोज पाते हैं। सामान्यीकृत दौरे (Generalized Seizures): ये दौरे मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों को एक साथ प्रभावित करते हैं। इसमें टॉनिक-क्लोनिक दौरे सबसे आम हैं जहाँ व्यक्ति अचानक चेतना खोकर, शरीर को अकड़ता है (टॉनिक) और फिर अंगों को झटके देता है (क्लोनिक)। एब्सेंस दौरे (Petit Mal) में व्यक्ति बस कुछ सेकंड के लिए टकटकी लगाता है जो अक्सर बच्चों में देखा जाता है।
डा. यादव ने कहा कि ये दौरे मस्तिष्क के केवल एक हिस्से में शुरू होते हैं। इन्हें चेतना के आधार पर आगे विभाजित किया जाता है: फोकल अवेयर दौरे (Focal Aware) में व्यक्ति होश में रहता है लेकिन शरीर के एक हिस्से में झटके या अजीब भावनाएँ महसूस करता है जबकि फोकल इम्पेयर्ड अवेयरनेस दौरे (Focal Impaired Awareness) में चेतना आंशिक रूप से या पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है। यसमाजिक कलंक को समाप्त करने के लिए भ्रांतियों को दूर करना अत्यंत आवश्यक है। डॉ. हरि नाथ यादव ने निम्नलिखित भ्रांतियों पर प्रकाश डाला। भ्रांति: दौरा पड़ने पर मरीज़ के मुँह में चम्मच, जूता या प्याज देना चाहिए। सत्य: यह बेहद खतरनाक है! मुँह में कुछ भी डालने से गला अवरुद्ध हो सकता है या दाँत टूट सकते हैं।
दौरे के दौरान सही बचाव और प्राथमिक उपचार के बारे में उन्होंने कहा कि दौरे के दौरान मरीज़ को चोट लगने से बचाना ही सबसे महत्वपूर्ण है। प्राथमिक उपचार के लिए ये कदम उठाएँ: शांत रहें और घबराएँ नहीं। व्यक्ति को ज़मीन पर करवट (Recovery Position) में लिटा दें, ताकि साँस लेने का रास्ता साफ रहे।
उनके सिर के नीचे कोई मुलायम वस्तु (जैसे मुड़ा हुआ कपड़ा या जैकेट) रखे।
कसने वाले कपड़े (टाई, कॉलर) ढीले कर दें। कभी भी मुँह में कुछ न डालें, और दौरे को जबरदस्ती रोकने की कोशिश न करें। दौरा खत्म होने तक उनके साथ रहें। मिर्गी का उपचार और प्रबंधन के बारे में कहा कि मिर्गी का इलाज 90% से अधिक मामलों में संभव है और यह लाइलाज नहीं है। उपचार के प्रमुख भाग हैं:
एंटी-एपिलेप्टिक ड्रग्स (AEDs): ये मुख्य उपचार हैं जो दौरों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हैं। सही दवा के चुनाव के लिए विशेषज्ञ से परामर्श आवश्यक है। जीवनशैली प्रबंधन: पर्याप्त नींद लेना, तनाव कम करना और शराब/नशीले पदार्थों से दूर रहना उपचार में महत्वपूर्ण हैं। विशेष उपचार: यदि दवाएँ काम नहीं करती हैं, तो कुछ मामलों में सर्जरी या कीटोजेनिक आहार जैसे विकल्प भी उपलब्ध होते हैं।
डॉ. हरिनाथ यादव ने मिर्गी से पीड़ित और उनके परिवारों को एक सीधा संदेश दिया: "मिर्गी का दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर से सलाह लेने में देरी या खुद से इलाज करने की कोशिश का सीधा असर आपके दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा। अनियंत्रित दौरे मस्तिष्क को स्थायी क्षति पहुँचा सकते हैं और चोट लगने का खतरा बढ़ा सकते हैं। मिर्गी का उपचार संभव है, इसलिए विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करें। साथ ही सामाजिक कलंक के कारण पैदा होने वाले अवसाद और चिंता के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श अवश्य लें। मिर्गी को नज़रअंदाज़ न करें; विज्ञान में विश्वास रखें!" इस अवसर पर अस्पताल के समस्त स्टाफ, प्रतिमा यादव, डॉ. सुशील यादव, मरीज सहित उनके परिजन उपस्थित रहे।
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