महराजगंज, जौनपुर। स्थानीय विकास खण्ड का परिसर गुरूवार को उस समय अलग ही तस्वीर बयां कर रहा था जब ग्राम विकास अधिकारी एसोसिएशन और ग्राम पंचायत अधिकारी संघ के आह्वान पर सभी ग्राम सचिव विभागीय बैठक के लिए साइकिल से पहुंचे। काली पट्टी बांधे सचिवों का यह जत्था सत्याग्रह आंदोलन के तीसरे चरण का प्रतीक ही नहीं, बल्कि उस विसंगति का मौन सवाल भी बना। इसमें डिजिटल युग की जिम्मेदारियाँ तो दे दी गईं परंतु साधन अब भी साइकिल भत्ते तक सीमित हैं।
संजय श्रीवास्तव और विनय यादव के नेतृत्व में सचिवों ने संदेश दिया कि जब सरकार हमें साइकिल भत्ता ही देती है तो अब IGRS निस्तारण, आवास, कार्य सत्यापन, गौशाला निरीक्षण, पेंशन सत्यापन जैसे सभी कार्य साइकिल से ही किये जायेंगे। जिम्मेदारियां हाईटेक, सफर अब भी साइकिल का जौनपुर ग्राम विकास अधिकारी संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रहे संजय श्रीवास्तव ने बताया कि ऑनलाइन हाजिरी, गैर-विभागीय कार्यों और बढ़ते फील्ड निरीक्षणों के दबाव के बीच सचिव आज भी गांव-गांव साइकिल से दौड़ लगाने को मजबूर हैं।जहां डिजिटल पोर्टल, समयबद्ध निस्तारण और 24×7 जवाबदेही की मांग है, वहीं वास्तविकता यह है कि सचिव की फाइलें, रजिस्टर और लैपटॉप/डोंगल सब कुछ उसी पुरानी साइकिल पर लदा हुआ चलता है। उन्होंने यह भी पीड़ा जताई कि एडीओ आईएसबी जैसे अधिकारियों को भी वाहन भत्ता नहीं मिलता जबकि वे भी शिकायतों, निरीक्षणों और सत्यापनों के लिए लगातार फील्ड में रहते हैं, ऐसे में पूरी व्यवस्था ही जमीनी कर्मियों की तकलीफ से आंख चुराती दिखती है।
इस दौरान सचिवों ने साफ कहा कि यह चरणबद्ध सत्याग्रह केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रम नहीं, बल्कि लंबे समय से अनदेखी हो रही न्यायपूर्ण मांगों की अंतिम चेतावनी है। यदि शासन ने अब भी सचिवों की स्थिति, वाहन/यात्रा भत्ता, ऑनलाइन हाजिरी और गैर-विभागीय कार्यों के बोझ पर गंभीर निर्णय नहीं लिया तो अगले चरण में सभी सचिव अपना डोंगल ब्लॉक मुख्यालय पर जमा कर देंगे, जिससे ऑनलाइन कार्य व्यवस्था स्वतः ठप हो जाएगी। यह कदम उस गहरे आक्रोश का संकेत है जिसमें सिस्टम को चलाने वाले ही सिस्टम से असहाय महसूस कर रहे हैं। साइकिल की घंटी में दबा दर्द, फिर भी कर्तव्य पर डटे ज्योति सिंह, संतोष दुबे, सुरेंद्र यादव, सत्येंद्र यादव, विकास गौतम, विकास यादव, शेष नारायण मौर्य, प्रशांत यादव, शशिकांत सोनकर, उमेंद्र यादव सहित सभी सचिवों की मौजूदगी ने इस सत्याग्रह को सामूहिक स्वर दिया।
उन्होंने कहा कि दिन भर की भागदौड़, फाइलों का बोझ, डिजिटल पोर्टल की डेडलाइन और ऊपर से साइकिल की थकान के बावजूद सचिव अपने विभागीय दायित्वों से पीछे नहीं हटे, बस एक संदेश जरूर दे गये। गांव की सरकार चलाने वालों को भी इज्जत, सुविधाएं और सम्मानजनक कार्य-परिस्थिति मिलनी चाहिए। ब्लाक में साइकिल पर निकला यह काफिला ग्रामीण प्रशासन की उस सच्चाई का मार्मिक आइना बन गया जिसे अक्सर रिपोर्टों और पोर्टलों के पीछे छिपा दिया जाता रहा है।
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