Jaunpur Live : दास्ताने कर्बला 4 : जो हुसैन से लड़ने को तैयार न हो उसका कर दिया जाय कत्ल

इब्ने जेयाद ने कूफा सहित अन्य शहरों में जारी किया फरमान
जौनपुर। इमाम हुसैन जंग से बचने की कोशिश कर रहे है और यजीदी फौज का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। तीन मोहर्रम की रात गुजर गयी और चार मोहर्रम की सुबह नमूदार होती है। इब्ने जेयाद ने मोहर्रम की चौथी तारीख को कूफा शहर स्थित मस्जिद में अपने लोगों को मना किया जिसके संबंध में अल्लामा मजलिसी लिखते है कि इब्ने जेयाद ने जमा हुए लोगों से पूछा कि तुम लोगों ने आले अबू सुफियान को जांचा और परखा है और जैसा कि तुम चाहते हो तुम्हे वैसे ही मिले है। यह अमीर यजीद है तुम लोग इसे पहचानते हो इसके दौरे हुकुमत में हर जगह अमन कायम है। तुम्हे इसके दुश्मन हुसैन से जंग करने के लिए भेजा जाएगा और तुम लोग इससे इनकार नहीं करोगे। इतना कहने के बाद उसने लोगों को खरीदना शुरू किया। भारी भरकम रकम देकर जंग के लिए लोगों को तैयार कर लिया।



सबसे पहले शिम्र 4 हजार सवारों के साथ, मजाहिर बिन रहीना माजनी 3 हजार, नसर बिन हदसा 2 हजार सैनिकों के साथ रवाना हुआ और इस तरह कुल 20 हजार का और लश्कर जमा हो गया। 4 मोहर्रम का दिन खत्म होता है 5 मोहर्रम को फाजिल खेयाबानी ने किताब वसीलतुननिजात के हवाले से लिखा है कि पांचवीं मोहर्रम को इब्ने जेयाद ने एक और पत्र वाहक को तलब किया। जिसका नाम सबस बिन  रबई था। अल्लामा मजलिसी के अनुसार जब इब्ने जेयाद ने उसे बुलाया तो उसने बीमारी का बहाना बनाया और हाजिर नहीं हुआ लेकिन रात के वक्त वह इब्ने जेयाद के पास आया। इब्ने जेयाद ने उसे अपने पास बैठाकर कर्बला जाने के लिए कहा यह वहीं सबस बिन रबई था जिसने इमाम हुसैन को पत्र लिखकर आने के लिए कहा था। इधर कर्बला के मैदान में हुसैन अपने उन्ही शहाबियों के साथ मौजूद है जिन्हें लेकर वे पहुंचे थे। छह मोहर्रम आती है अल्लामा मजलिसी के अनुसार इब्ने जेयाद फौज पर फौज भेजता रहा। यहां तक की उसने से जंग करने के लिए कर्बला में उमर बिन सअद के पास 30 हजार सिपाही जमा हो गये। ये वही चौथी मोहर्रम थी जिस दिन इब्ने जेयाद ने इब्ने सअद को एक और पत्र लिखकर हुसैन के कत्ल करने के लिए कड़ाई से हुक्म दिया था। इधर कूफे की हालत यह थी कि जिसको भी हुसैन से जंग करने के लिए भेजा जाता वो कुछ दूर जाकर वापस हो जाता। दिनौरी के अनुसार इब्ने जेयाद बड़ी संख्या में लोगों को जंग के लिए भेजता था लेकिन लोग हुसैन से जंग नहीं करना चाहते थे। इसलिए अधिकांश लोग वापस हो जाते थे यह देख इब्ने जेयाद ने सबीद बिन अब्दुल रहमान को जासूसी के लिए तैनात किया और कहा कि जो भी कर्बला न जाए उसे पकड़कर वापस लाया जाय। इसने एक व्यक्ति को पकड़कर उसके हवाले किया जिसका सरेआम कत्ल कर दिया गया और लोग भयभीत हो गये। दूसरी तरफ कर्बला में हबीब इब्ने मजाहिर ने इमाम हुसैन से पास स्थित एक बस्ती में जाने की ख्वाहिश जाहिर की ताकि वहां के लोगों को हुसैन की मदद के लिए अमादा किया जा सके। यह बस्ती बनी असद की थी। इमाम हुसैन से इजाजत मिलने के बाद हबीब वेश बदलकर अंधेरी रात में वहां पहुंचे और लोगों को हुसैन की मदद करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि नबी का नवासा मोमिनों के एक गिरोह के साथ यहां पड़ाव डाले हुए है और उमर बिन सअद के लश्कर ने चारों तरफ से घेर लिया है।



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