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Jaunpur Live : जब मोहर्रम का चांद देख हुसैन ने कहा ये हमारा आखिरी चांद है

छह महीने का मुस्लसल सफर कर हुसैन दो मुहर्रम को कर्बला पहुंचे
जौनपुर। 28 रजब सन् 61 हिजरी इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद (स.अ.) के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) अपना वतन मदीना छोड़ देते हैं। क्योंकि यजीद नामक शासक इस्लाम धर्म में अपने हिसाब से परिवर्तन कर इमाम हुसैन (अ.स.) से उस परिवर्तन पर स्वीकृत प्रदान करने का दबाव बनाने लगा। इमाम ने यह कह कर इंकार कर दिया कि शरीयते मोहम्मदी में किसी को किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। इंकार के बाद यजीद ने इमाम को कत्ल करने की धमकी दी और इमाम अपना वतन छोड़कर मक्के चले गये। जिलहिज अर्थात बकरईद के महीने में इमाम मक्के में है और चाहते है कि हज के फराएज अंजाम दें लेकिन वहां भी हाजियों के लिबास मंे यजीदी फौज उन्हे कत्ल करने के लिए इकट्ठा हो गयी। इमाम को जानकारी हुई हज को उमरे में बदला और प्रस्थान कर गये। कू फियों का बुलावा आ चुका था लेकिन इमाम खुद न जाकर वहां के हालात का पता करने के लिए अपने भाई मुस्लिम इब्ने अकील को भेजा लेकिन जिस बात का डर था वो समाने आ ही गया। मुस्लिम शहीद कर दिये गये। इसलिए इमाम ने अपनी मंजिल बदल दी कू फे न जाकर काफिले को कर्बला की तरफ मोड़ दिया। काफिला रास्ते में है या यूं कहें कर्बला नजदीक है और इसी दौरान मोहर्रम का चांद आसमान पर दिखाई पड़ा। इमाम ने चांद देखा काफिले वालों से मुखातिब हुए और कहा ये चांद हमारा आखिरी चांद है।
गौरतलब हो कि मजहबे इस्लाम के इतिहास में दास्ताने कर्बला एक ऐसी अजीम कुर्बानी का नाम है जिसमें एक तरफ बरबरीयत अपनी हदें पार कर रही थीं तो दूसरी तरफ मजलूमियत उसके सामने पहाड़ बनकर खड़ी थी लेकिन कर्बला को समझने के लिए सबसे पहले इमाम हुसैन (अ.स.) को जनना जरुरी है। कौन इमाम हुसैन(अ.स.) ? हजरत मोहम्मद मुस्तफा के नवासे, हजरत अली के छोटे फरजंद, शहजादी फातेमा का वो बेटा जिसने फातेमा(स.अ.) की शहादत के बाद जनाजे के पास जाने से यह कह कर इंकार कर दिया कि जबतक मां बुलाती नहीं थी मै उसके पास नही जाता था। तारीख कहती है कि हुसैन का यह जुम्ला जैसे ही बारगाहे इलाही से टकराया बंदे कफन टूट गया और आवाज आयी.... आ मेरे लाल मुझसे आखिरी बार मिल ले। हुसैन(अ.स.) का परिचय यहीं खत्म नही हुआ इतिहास साक्षी है कि हुसैन(अ.स.) उस शख्सियत क ा नाम है जिसकी कोई भी बात खुद ईश्वर अर्थात अल्लाह ने नही टाली, जिसका झुला झुलाने के लिए जिबरईल जैसा फरिश्ता मोकर्रर था, जिसके झुले से मसकर फितरुस फरिश्ते का पर वापस आ गया, जिसकी चौखट पर आकर नसीब में औलाद न होते हुए भी राहिब को सात बेटे मिल गये, रोजे ईद जिसके लिए जन्नत का दरबान रिजवान दर्जी बनकर कपड़े लेकर आया, रोजे ईद सवारी की जिद करने पर जिसक ो पुश्त पर बिठाकर खुद रसूले अकरम मोहम्मदे मुस्तफा 70 बार घर से मस्जिद तक घुटनियों के बल चले, जिस हुसैन के  लिए नमाज की हालत में पीठ पर सवार हो जाने पर रसूल ने सज्दे को तूल दिया, जिस हुसैन को कभी मिम्बर से कभी मस्जिद से यह कहकर पहचनवाया कि इस हुसैन को जो रुलायेगा उसने मुझे रुलाया और जिसने मुझें रुलाया उसने खुदा को रुलाया ये वही हुसैन हैं लेकिन यजीद इसी हुसैन को चैन से नही रहने दे रहा है। हुसैन बगैर जंग के इस्लाम बचाने पर आमादा हैं और यजीद धर्म में तब्दील कर अपना धर्म लागू करने के लिए हुसैन के कत्ल पर आमादा है। हुसैन सफर पर सफर कर रहें हैं और दो मुहर्रम को सरजमीने कर्बला पर कदम रखते हैं।

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