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Jaunpur Live : मोहर्रम : दास्ताने कर्बला 2 : इमाम हुसैन ने कहा हम जंग में आगाज करना पसंद नहीं करते

दो मोहर्रम को इमाम का खेमा सरजमींने कर्बला पर लग गया
जौनपुर। पहली मोहर्रम को इमाम हुसैन सरजमींने नैनवा पर पहुंचते है। अलग अलग रिवायतों से यह स्पष्ट हैं कि नैनवा से कर्बला तक का सफर सुबह से शाम तक का है। इस प्रकार दूसरी मोहर्रम को इमाम हुसैन सरजमींने कर्बला पर कदम रखते है। इब्ने नुमा के मुताबिक 2 मोहर्रम 61 हिजरी बुध का दिन इमाम हुसैन का घोड़ा चलते-चलते रुक गया। इमाम ने एक के बाद एक सात घोड़े बदले लेकिन कोई भी घोड़ा आगे नहीं बढ़ रहा था। वायज काशिफी ने तहरीर किया है कि इमाम ने रकाब से पाव निकाले और जमीन पर जैसे ही कदम रखा मिट्टी का रंग लाल हो गया और एक दर्द उठा जो आपके चेहरे पर पड़ गया। इमाम ने लोगों से जमीन का नाम पूछा तो किसी ने गाजरिया तो किसी ने मारिया किसी ने नैनवा किसी ने शातिउल फोरात बताया लेकिन इमाम ने कहा इसका कोई और नाम तो किसी ने कर्बला भी कहा। जैसे ही कर्बला का नाम आया इमाम ने एक ठंडी आह भरी और कहा ये बेचैनी और परेशानी की जमीन है। इमाम ने अपने लोगों को नीचे उतरने का हुक्म दिया और कहा यहीं हमारा ठहराव होगा और यहीं हमारा खून बहाया जाएगा। हमारे नौजवान कत्ल किये जाएंगे बच्चे जिबह किये जाएंगे। मेरे जद्र रसूल अल्लाह ने मुझे इसी जमीन का वायदा किया था। इमाम ने नजदीक की बस्ती के लोगों को जमा किया और जमीन की कीमत अदा कर जमीन खरीद ली। इमाम ने अपने सभी साथियों और परिवार के लोगों को जमा किया और दुआ फरमाई ऐ अल्लाह हम तेरे नबी मुहम्मद स.अ. के परिवार के है। हमें हमारे जद के  हरम से बाहर निकाल दिया गया है और ये जुल्म हम पर बनी उमैया ने किया है। हमें हमारे हक अता कर दे और जालिमों के मुकाबले हमारी मदद कर। कशकोल युसुफ बहरामी के मुताबिक इमाम ने 60 हजार दिरहम में कर्बला की जमीन खरीदी थी और बस्ती के लोगों को जमा कर एक वसीयत की थी कि जब भी मेरी जियारत के लिए कोई यहां आये तो उसे तीन दिन का मेहमान जरुर रखना। फिर अपने असहाब से मुखातिब होकर फरमाया लोग दुनिया के बंदे है और धर्म को जबानों का चटखारा जानते है और जब तक जबान पर इसका मजा रहता है इसे संभालते है जब इम्तेहान में मुलतेला होते है तो धर्मावलंबियों की तादाद घट जाती है। इसके बाद इमाम ने अपने खेमे लगाने का हुक्म दिया। अलग-अलग रियायतों से यह स्पष्ट हैं कि इमाम ने जहां खेमे लगवाये थे वहां से पानी काफी दूर था। यह खेमे ऐसे टीलों के मध्य लगाये गये थे जो उत्तर पूर्व और दक्षिण पश्चिम तक फैले हुए थे और ये अद्र्ध गोलाकार थे। इसी के मध्य में सभी खैमे इस प्रकार लगाये गये कि इमाम हुसैन के खैमे के पीछे उनकी बहन जनाबे जैनब का खैमा और अन्य खवातिनों के खैमे लगाये गये जिसके चारो तरफ बनी हाशिम के नौजवानों के खैमे नस्ब हुए और शहाबियों के खैमे अलग अलग स्थानों पर लगाए गए जिससे अद्र्ध वृत्ताकर शक्ल बन गयी। सभी खैमों के पीछे झाड़ियां थी जिनके बीच में खंदक खोदवायी गयी। खैमों के स्थापित हो जाने के बाद तरजुमए लहूफ मोतरज्जिम के मुताबिक इमाम हुसैन अपनी तलवार को सैकल (धार तेज करना) करने लगे और इरशाद फरमाया ऐ जमानए पायदात उफ हो तूझ पर कि तूने किसी से वफा नहीं की हर सुबहो शाम कैसे कैसे मोहतरम शहाबियों को तूने कत्ल किया। इतिहासकार लिखता है कि जब इमाम ये बाते कह रहे थे तो उनकी बहन जैनब ने कहा कि भाई ये बातें तो उस शख्स की है जिसको अपनी शहादत का पूरा यकीं हो जाए। हजरत ने कहा हां ऐ बहन ऐसा ही है। इधर यजीदी लश्कर जिसकी कमान हुर संभाले हुए था वह उसने भी इमाम हुसैन के खैमे से कुछ ही दूरी पर अपना पड़ाव डाल दिया और उसने इब्ने जयाद को खत लिखा जिसमें तहरीर था मैं तुम्हारे हुक्म के अनुसार हुसैन को घेरकर कर्बला ले आया अब तुम यहां की सूरते हाल को देख लो जिसके बाद इब्ने जयाद ने इमाम हुसैन को खत लिखा कि ऐ हुसैन मुझे सूचना मिल गयी है कि आप कर्बला पहुंच गये है आमिर यजीद ने हमें खत में लिखा है कि हम तब तक भरपेट खाना पानी न करें जब तक की तुम्हारा कत्ल न कर दें अथवा तुम मेरे और यजीद बिन माविया की शर्तों को मंजूर करो। तारीख में मिलता है कि इमाम हुसैन ने इस खत को पढ़ने के बाद फेंक दिया और फरमाया कि वो लोग कभी कामयाब नहीं होते जो ईश्वर को नाराज कर आदमी की खुशनुदी खरीदते है। इधर इब्ने जयाद का खत लाने वाले कासिब ने जवाब पूछा तो इमाम ने फरमाया कि मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है कि इसलिए वो अल्लाह के अजाब का मुस्तहक है।

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