जौनपुर। मुहर्रम के महीने में शोकसभाएं पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने नवासे और मुसलमानों के खलीफा हज़रत अली के बेटे इमाम हुसैन की शहादत को याद करके मनायी जाती है। लोग गम ए हुसैन का इज़हार करने के लिए काले लिबास पहनकर मजलिसों में शिरकत करने निकल पड़ते हैं। हमेशा की तरह इस साल भी मुहर्रम के महीने में नौहा, मातम और हुसैन पर रोने वालों की सदा से पूरा शहर गमगीन हो गया।
इस्लामिक मामलात के जानकार एसएम मासूम इस बार जौनपुर में जनाब ज़ीशान हैदर के यहां ऐतिहासिक इमामबाड़ा बड़े इमाम, गूलरघाट पर 10 दिनों तक शाम आठ बजे मजलिस से पैगाम ऐ इंसानियत दे रहे हैं। आज उसी सिलसिले की पांचवीं मजलिस में उन्होंने बताया कि इस्लाम में किसी पर ज़ुल्म करने वाला खुद को मुसलमान नहीं कहला सकता। कर्बला में इमाम हुसैन और उनके परिवार पर ज़ुल्म करने वाले भी खुद को मुसलमान कहते थे लेकिन इमाम हुसैन ने कर्बला में शहादत देकर बता दिया कि ज़ुल्म इस्लाम का हिस्सा नहीं।
इमाम हुसैन का किरदार यह था कि जब मक्का से कूफ़े के सफर के वक़्त दुश्मन ने उन्हें घेरा तो उन्होंने देखा कि दुश्मन के फौजी प्यासे इतने हैं कि जंग करने के क़ाबिल भी नहीं हैं ऐसे में हुसैन चाहते तो हमला कर देते लेकिन कमज़ोर पर हमला करना इस्लाम नहीं इसलिए हुसैन ने दुश्मन के फौजियों को पानी पिलाया और यहां तक की उनके प्यासे घोड़ों को भी पानी पिलाया। उसी हुसैन को कर्बला में तीन दिन का प्यासा शहीद किया गया यहां तक की इमाम हुसैन के 6 महीने के बच्चे अली असगर को भी पानी ना दिया और प्यासा तीरों से शहीद कर दिया। अली असगर की शहादत को जब बयान किया तो सारे लोग आंसूओं और आवाज़ के साथ रो पड़े और नौहा मातम करने लगे। मजलिस के बाद इसे बड़े इमाम के इमामबाड़े से ऐतिहासिक जुलूस ए अज़ादारी निकला जिसमें अलम हज़रत अब्बास, तुर्बत के साथ—साथ अंजुमनें नौहा मातम करती रही।
इस्लामिक मामलात के जानकार एसएम मासूम इस बार जौनपुर में जनाब ज़ीशान हैदर के यहां ऐतिहासिक इमामबाड़ा बड़े इमाम, गूलरघाट पर 10 दिनों तक शाम आठ बजे मजलिस से पैगाम ऐ इंसानियत दे रहे हैं। आज उसी सिलसिले की पांचवीं मजलिस में उन्होंने बताया कि इस्लाम में किसी पर ज़ुल्म करने वाला खुद को मुसलमान नहीं कहला सकता। कर्बला में इमाम हुसैन और उनके परिवार पर ज़ुल्म करने वाले भी खुद को मुसलमान कहते थे लेकिन इमाम हुसैन ने कर्बला में शहादत देकर बता दिया कि ज़ुल्म इस्लाम का हिस्सा नहीं।
इमाम हुसैन का किरदार यह था कि जब मक्का से कूफ़े के सफर के वक़्त दुश्मन ने उन्हें घेरा तो उन्होंने देखा कि दुश्मन के फौजी प्यासे इतने हैं कि जंग करने के क़ाबिल भी नहीं हैं ऐसे में हुसैन चाहते तो हमला कर देते लेकिन कमज़ोर पर हमला करना इस्लाम नहीं इसलिए हुसैन ने दुश्मन के फौजियों को पानी पिलाया और यहां तक की उनके प्यासे घोड़ों को भी पानी पिलाया। उसी हुसैन को कर्बला में तीन दिन का प्यासा शहीद किया गया यहां तक की इमाम हुसैन के 6 महीने के बच्चे अली असगर को भी पानी ना दिया और प्यासा तीरों से शहीद कर दिया। अली असगर की शहादत को जब बयान किया तो सारे लोग आंसूओं और आवाज़ के साथ रो पड़े और नौहा मातम करने लगे। मजलिस के बाद इसे बड़े इमाम के इमामबाड़े से ऐतिहासिक जुलूस ए अज़ादारी निकला जिसमें अलम हज़रत अब्बास, तुर्बत के साथ—साथ अंजुमनें नौहा मातम करती रही।
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