सिकरारा, जौनपुर। कहावत है कि रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था। कितनी सच्चाई है इस कहावत में यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह कहावत चरितार्थ हो रही है पशुपालन विभाग पर। जहां इस बरसात के सीजन में एक तरफ तो जानवर कई तरह की संक्रामक बीमारियों से घिरे हुए हैं, तो दूसरी तरफ पूरा पशुपालन विभाग प्रतिरक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने के नाम पर अस्पताल बंद करके जुटा हुआ है। जिला मुख्यालय से अत्यंत नजदीक विकासखंड सिकरारा क्षेत्र के दर्जनों गांव और सैकड़ों पशु खुरपका और मुंहपका जैसी संक्रामक बीमारियों की चपेट में है। हालांकि विकासखंड मुख्यालय पर पशु चिकित्सालय पर पशु चिकित्सा अधिकारी समेत चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं लेकिन वहां लगी सूचना बीमारी से निजात पाने के लिए चिकित्सालय परिसर पहुंचे पशुपालकों को मायूस कर वापस लौटा रही है। क्षेत्र में फैली खुरपका मुंहपका समेत कई बीमारियां समुचित इलाज ना मिल पाने के कारण भयावह रूप लेती जा रही है लेकिन प्रतिरक्षण कार्यक्रम के नाम पर पशु चिकित्सालय का स्टाफ मौजूदा होने के कारण उन्हें झोलाछाप तथाकथित पशु चिकित्सकों से इलाज कराने को मजबूर होना पड़ रहा है। इलाज ना मिलने या गलत इलाज होने के कारण कई पशुपालक अपने कीमती पशुओं से हाथ भी दो चुके हैं।
क्षेत्र से मिली सूचना के आधार पर पता चला है अप्रैल-मई में हुए खुरपका मुहपका टीकाकरण के दौरान जिन क्षेत्रों में टीकाकरण नहीं हुआ था वहां यह बीमारी तेजी से फैली हुई है। एक पशुओं से दूसरे पशुओं में फैलने वाली बीमारी इलाज ना मिलने के कारण प्रायः जानलेवा हो जाती है। खबर है बरसात के सीजन में खुरपका और मुंहपका की बीमारी विकासखंड सिकरारा की 82 ग्रामसभाओं और दो सौ से ज्यादा राजस्व गांव में से काफी क्षेत्र में महामारी का रूप ले चुकी है। मीडिया की टीम ने क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण किया तो पाया कि जिन क्षेत्रों में बरसात के पहले नियमानुसार टीकाकरण हो गया वहां वहां के पशु स्वस्थ है लेकिन जहां बरसात से पूर्व टीकाकरण नहीं हुआ है वहां की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। विकासखंड सिकरारा के ग्राम चकमोहन सीहीपुर के ग्राम प्रधान उमानाथ यादव ने बताया उनके गांव मे बरसात से पूर्व खुरपका और मुंहपका के टीके लगाए गए। यही बात स्थानीय निवासी बांके लाल यादव, जिलेदार यादव आदि ने भी बताई। हालांकि इन लोगों ने इस बात की शिकायत की कि जब वह दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए अपनी पशु चिकित्सालय पर पहुंचते हैं तो उन्हें वहां लटका हुआ ताला मिलता है। ऐसे में क्षेत्र के झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराना उनकी मजबूरी होती।
इसके विपरीत इसी विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम वीरपालपुर में किसी प्रकार का टीकाकरण नहीं हुआ है। वहां के हालात यह हैं कि कई जानवर मर चुके हैं और कई बुरी हाल में है। पशुपालक इस बात को लेकर आशंकित हैं कहीँ उनके और जानवरों में भी यह संक्रमण ना फैल जाएं। क्षेत्र के पशुपालक रवि सिंह का कहना है कि उनके यहां वैक्सीनेशन नहीं हुआ है। उनकी दो भैंसे बीमार हैं। यही हाल गांव के दूसरे पशुपालकों का भी है। आरोप यह भी हैं कि पशु चिकित्सालय पर जाने पर पशु चिकित्सा अधिकारी नहीं मिलते। इलाज वहां मौजूद दूसरे कर्मी करते हैं। पशु चिकित्सा अधिकारी सिकरारा के बारे में सामान्यतया कहना हैं कि वह मुख्यालय पर नहीं रहते। वाराणसी में ज्यादा रहते हैं। यही हाल ग्राम बाहरपुर के जानवरों का भी है। पशुपालक सूबेदार गौतम ने बताया उनके और उनके गांव के पशुओं को किसी प्रकार का टीका नहीं लगाया गया है। ऐसा ही कहना है ग्राम प्रधान दिजहिया का। ग्राम प्रधान राधे सरोज ने बताया उनके गांव में वैक्सीन नहीं लगी है। जिसकी वजह से पशुओं में यह बीमारी फैली हुई है योग्य चिकित्सक मिल नहीं रहे हैं और झोलाछाप डॉक्टर मनमाना इलाज कर मनमानी कीमत वसूल रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण गुरुवार को क्षेत्र के ही गांव भाऊपुर का है जहां चिकित्सक के अभाव चलते भैंस मर गई। हालात ऐसे हैं की पशुपालक दोहरी मार मार रहा है एक तो बीमार जानवरों का सही इलाज नहीं हो पा रहा तो दूसरी तरफ झोलाछाप डॉक्टर अनाप-शनाप दवाई लगा कर मनमानी कीमत वसूल रहे हैं।
औषधि विशेषज्ञों का कहना है कि जिस प्रकार झोलाछाप इलाज में एंटीबायोटिक इस्तेमाल कर रहे हैं उससे पशुओं और उनके उत्पादों दोनों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक इस्तेमाल किए जा रहे हैं जो सिर्फ विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में ही किए जा सकते हैं। ऐसे एंटीबायोटिक दुग्ध उत्पादों पर भी अपना असर छोड़ते हैं जो मानव जाति के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।
इस संबंध में जब पशु चिकित्सालय सिकरारा के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनोज यादव से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया स्टाफ की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। डॉ. यादव ने कहा कि 15 कर्मियों की पदस्थापना के स्थान पर वह सिर्फ छह कर्मियों की मदद से पूरे क्षेत्र को संभाल जा रहा हैं। उन्होंने दावा किया पहले चरण में उन्होंने अपने टीकाकरण के टारगेट पूरे किए थे। पुनः शुरू हुए सघन प्रतिरक्षण कार्यक्रम में पशुओं को टीका लगवा रहे हैं रही बात चिकित्सालय बंद होने की तो उन्होंने स्पष्ट किया कि सघन प्रतिरक्षण कार्यक्रम शेडूल के हिसाब से पशु चिकित्सालय पर पदस्थ फार्मेसिस्ट को। चिकित्सालय पर रुकना होता है लेकिन उनके यहां फार्मेसिस्ट का पद रिक्त है। इस कारण चिकित्सालय बंद रहता है।
क्या है आउटब्रेक के कारण
हालांकि सिकरारा क्षेत्र में फैली खुरपका और मुंहपका बीमारी के कारणों का पता लगाना है विशेषज्ञों का काम है लेकिन स्थलीय निरीक्षण के दौरान जो तथ्य सामने आए उनमें सबसे प्रमुख यह है उपलब्ध संसाधनों का बेहतर प्रयोग इस महामारी से बचा सकता था। जन चर्चा यह भी है वैक्सीनेशन और दूसरे कामों के लिए मिली चार पहिया गाड़ी प्रायः प्रयोग नहीं की जाती। दूसरा सबसे बड़ा कारण है आंकड़े बाजी। वैक्सीनेशन के आंकड़ों को सही तरह प्रस्तुत कर कागज पर श्रेष्ठता दिखाई जा सकती है लेकिन जब क्षेत्र बीमारी की चपेट में आ गया तो सारी बातें खुलकर सामने आ गई। पशुपालकों ने इस बात की शिकायत भी की कि वैक्सीनेशन कर्मियों ने टीकाकरण के दौरान कूल चेन मेंटेन नहीं रखा। हमेशा ठंडे में रखी जाने वाली वैक्सीन झोले और जेब में भरकर लाई गई और वैक्सीनेशन कर दिया गया। जिससे वैक्सीन की गुणवत्ता प्रभावित हुई
बीमारों का पुरसाहाल नहीं, स्वस्थ को लग रहे हैं टीके
यह एक आश्चर्य की बात है जो जानवर बीमार, दर्द से करा रहे हैं इलाज के लिए बाट जोह रहे हैं। उनका इलाज छोड़ कर पूरा पशुपालन महकमा स्वस्थ पशुओं को टीका लगा रहा है। यह व्यवस्था गत सवाल है बीमार जानवरों को उनके हाल पर कैसे छोड़ दिया गया? पशुपालन विभाग की टीमें जगह-जगह टीकाकरण कर रही है और बीमार और मरते पशुओं का इलाज झोलाछापों के हवाले छोड़ दिया गया। ना तो यह नैतिक दृष्टि से सही है ना ही मानवीय दृष्टि से। एक चिकित्सक को बीमार, असहाय और कातर पशु के इलाज से कैसे रोका जा सकता है?
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