जौनपुर। जिले के पंडित नागेश्वर द्विवेदी जो गरीबी के वक्त ईमानदार, लोकप्रिय पूर्व सांसद रहे। जिले की मछलीशहर तहसील क्षेत्र के प्रेमकापुरा निवासी पंडित नागेश्वर द्विवेदी विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के विचारों से प्रभावित होकर आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े थे। इस दौरान वह कई बार जेल गए। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में उन्हें बगावत करने और सरकारी सम्पत्ति के नुकसान के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्हें 14 वर्ष की सजा भी हुई थी। वह एक स्वंत्रता सेनानी भी थे।
आजादी के बाद 1952 और 1957 में हुए चुनावों में वह कांग्रेस के टिकट पर जिले की गढ़वारा विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र से 1967 और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे। द्विवेदी अपने पैतृक गांव प्रेमकापुरा से करीब तीन किमी दूर मटियारी गांव में एक आश्रम बना कर रहते थे। उनके सादगी की प्रतीक की मिशाल दिया जाता है। उनके सात पुत्र रहे। उन्होनें अपने किसी पुत्रों की सिफारिश कभी नहीं किया। कहते थे कि आप लोग खुद से काबिल बनो। उनके ईमानदारी पर खादी ग्रामोद्योग ने 13 हेक्टेयर जमीन उनके नाम गौशाला के लिए दिया था।
किसी बागी शायर द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां क्रांतिकारियों की गुमनाम नामों पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं:
"उनकी तुरबत पर नहीं जलते एक भी दीए,
जिनके खूं से जलते थे चराग-ए-वतन।
जगमगा रहे हैं आज उनके मकबरे,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन"
जी हां, गुलामी के दौर में कभी जंग-ए-आजादी के हीरों रहे चारों छोर पर जिसकी चर्चा रही। आज अपने नाम की अस्तित्व की अंतिम सांसे गिन रहा है। पूरी तरह लोग भूलते जा रहे है। उनकी यादों की चर्चा उनके परिवार के सबसे छोटे सदस्य समाजवादी पार्टी के लोहिया वाहिनी के जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र मिश्रा ने विस्तृत चर्चा किया।
आजादी के बाद 1952 और 1957 में हुए चुनावों में वह कांग्रेस के टिकट पर जिले की गढ़वारा विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र से 1967 और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे। द्विवेदी अपने पैतृक गांव प्रेमकापुरा से करीब तीन किमी दूर मटियारी गांव में एक आश्रम बना कर रहते थे। उनके सादगी की प्रतीक की मिशाल दिया जाता है। उनके सात पुत्र रहे। उन्होनें अपने किसी पुत्रों की सिफारिश कभी नहीं किया। कहते थे कि आप लोग खुद से काबिल बनो। उनके ईमानदारी पर खादी ग्रामोद्योग ने 13 हेक्टेयर जमीन उनके नाम गौशाला के लिए दिया था।
किसी बागी शायर द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां क्रांतिकारियों की गुमनाम नामों पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं:
"उनकी तुरबत पर नहीं जलते एक भी दीए,
जिनके खूं से जलते थे चराग-ए-वतन।
जगमगा रहे हैं आज उनके मकबरे,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन"
जी हां, गुलामी के दौर में कभी जंग-ए-आजादी के हीरों रहे चारों छोर पर जिसकी चर्चा रही। आज अपने नाम की अस्तित्व की अंतिम सांसे गिन रहा है। पूरी तरह लोग भूलते जा रहे है। उनकी यादों की चर्चा उनके परिवार के सबसे छोटे सदस्य समाजवादी पार्टी के लोहिया वाहिनी के जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र मिश्रा ने विस्तृत चर्चा किया।
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