बात 2010-11 की है। जौनपुर के होटल में नेपाल से आया एक युवक वेटर का काम करता था। लड़का था प्रतिभाशाली, मगर हालात ने होटल का रास्ता दिखा दिया था। सपनों को पूरा करने का जुनून ऐसा कि रात में युवा होटल का काम करता और दिन में टीडी कॉलेज में पढ़ाई। युवक की इस जीवटता और जज़्बे को कॉलेज के एक सच्चे शिक्षक ने पहचाना। युवक की मेधा और आगे बढ़ने की ज़िद ने शिक्षक को प्रभावित किया। उन्होंने मास्टर्स पूरा होने पर उस युवक को अपनी गाइडेंस में पीएचडी कराकर ज़िंदगी में बहार ला दी। अतीत का वेटर युवा आज नेपाल के कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर है। यह नेक काम करने वाले तस्वीर में हैं। हमारे गुरुजी हैं।प्रो. आरएन त्रिपाठी। देश के प्रमुख समाजशास्त्री और बीएचयू में इस वक्त प्रोफ़ेसर हैं। ओज-तेज़ से भरपूर गजब के वक़्ता हैं। समाजशास्त्र पर लिखी दर्जनों किताबों से विश्वविद्यालयों के और प्रतियोगी छात्रों के बीच पहचाने जाते हैं। जिनकी गुरुता के अनेक उदाहरण हैं।
टीडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनके अंदर के सच्चे शिक्षक और उच्च कोटि के मानवीय मूल्यों का मैं गवाह रहा हूँ। आर्थिक रूप से कमज़ोर कितने ऐसे बच्चे मेरी नज़रों के सामने गुज़रे, जिन्हें गुरुवर ने यूजी-पीजी की किताबें सहित हर तरह की मदद देकर पढ़ाया लिखाया। ज़रूरत पड़ने पर फीस भी भरी। टीडी कॉलेज के चाहे शरीफ बच्चे रहे हों या बेहद उद्दंड, सब नतमस्तक रहते थे। इसलिए नहीं कि गुरुजी कोई दबंग शिक्षक या चीफ प्राक्टर थे, इसलिए कि उनकी विद्वता, सरलता, सादगी और मृदुभाषिता से हर कोई उनके प्रति सम्मान से भर जाता था।
2011-12 के बीच जब मैं जौनपुर में दैनिक जागरण का रिपोर्टर था तो कई बार कुछ ख़बरों में एक समाजशास्त्री का बयान चाहिए होता था तो फोन करते ही फटाफट गुरुजी गजब धाराप्रवाह हर पहलू उधेड़ कर रख देते। कई बार और कुछ दूसरे विषयों के विद्वानों को फ़ोन करता तो वे दस से 15 मिनट सोचने की बात कहकर फिर कॉल बैक करते। मानविकी के किसी भी विषय पर गुरुजी एक फोन पर हज़ार शब्द का लेख धारा प्रवाह बोलकर लिखवाने की क्षमता रखते हैं। इसी विद्वता के दम पर टीडी कॉलेज से निकलकर बीएचयू में आप प्रोफ़ेसर बने। आज, गुरुद्वेव का ज़िक्र इसलिए कि उन्हें प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए गठित उच्चतर शिक्षा आयोग में सरकार ने जगह दी है। साख के संकट से जूझ रहे आयोग में ऐसे ईमानदार और विद्वान प्रोफ़ेसर को जगह मिलना शुभ संकेत है।
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