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जलालपुर। त्रिलोचन महादेव मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है। मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है। मंदिर के सामने पूरब दिशा में ऐतिहासिक कुंड है, जिसमें हमेशा जल रहता है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर वाराणसी मार्ग पर स्थित शिवालय तक पहुंचने के लिए साधनों की कमी नहीं है। लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग के किनारे होने के कारण आवागमन की पर्याप्त सुविधा है। रोडवेज बस और प्राइवेट वाहन दिन भर चलते हैं।
त्रिलोचन का प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर अनेक ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए है। हालांकि कोई यह नहीं बता पाता है कि इस स्थान का नाम त्रिलोचन क्यों पड़ा है। किंतु यहां के पुजारियों का कहना है कि तीसरी नेत्र खोलकर बाबा भोले शंकर ने यहीं पर भस्मासुर को भस्म किया था। यहां शिवलिंग नहीं है। अपितु उस पर पूरा चेहरा, आंख, मुंह, नाक आदि बना हुआ है। आज भी अर्घ में कपूर जलाने के बाद स्पस्ट तौर पर देखा जा सकता है। इस प्राचीन शिव मंदिर में शिवलिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में पीछे झुका है। बताते हैं कि किसी जमाने में रेहटी और लहंगपुर समीपवर्ती दो गांवों के लोगों में विवाद हुआ था कि यह शिव मंदिर किस गांव की सरहद में है। पंचायतों से फैसला नहीं हुआ तो दोनों गांव के लोगों ने मंदिर का मुख्य गेट बंद कर दिया। फिर जब वह खुला तो लोगों की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। शिवलिंग उत्तर दिशा में रेहटी गांव की तरफ स्पष्ट रूप से झुका हुआ था। तब से यह मंदिर उसी गांव में माना जाता है।
त्रिलोचन महादेव मंदिर में श्रावण के महीने में लाखों की संख्या में कांवरिया व श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए पर्याप्त मात्रा में फोर्स की ब्यवस्था की गई है। पर्व को लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही है। मंदिर व धर्मशाला के साफ-सफाई का कार्य चल जोर-शोर से चल रहा है। स्रावण मास में जलाभिषेख के लिए मंदिर की साफ-सफाई व पूजन आरती के बाद मन्दिर का कपाट भोर में तीन बजे से कावरियां व भक्तों के लिए कपाट खोल दिए जाएंगे। मंदिर में दर्शनार्थियों को भोलेनाथ का दर्शन व जलाभिषेक कराने की प्रशासन व मंदिर के ब्यवस्थापक के द्वारा जोरो पर तैयारी चल रही है।
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