त्रिलोचन महादेव के प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर की महिमा को लेकर तमाम बातें प्रचलित हैं। यहां के पुजारी गिरी, ओम प्रकाश, मोहन आदि महंतों के मुताबिक इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है।
कहा जाता है कि यहां कहीं से शिव लिंग नहीं लाया गया अपितु सात पाताल का भेदन कर यहां बाबा भोलेशंकर स्वयं विराजमान हुए हैं। कहा जाता है कि यहां के मंदिर को लेकर समीपवर्ती दो गांवों रेहटी और डिंगुरपुर में विवाद था कि यह मंदिर किस गांव की सरहद के भीतर है। कई पंचायतें हुई किंतु बात नहीं बनी और नौबत मारपीट और खून-खराबे तक आ गई। दोनों गांवों के बुजुर्गो ने फैसला किया कि जब वे जगत स्वामी हैं तो यह फैसला भी उन्हीं को करना है कि यह मंदिर किस गांव की सरहद के अंदर है। दोनों पक्षों ने मंदिर को बाहर से बंद कर अपना-अपना ताला जड़ दिया फिर अपने घर चले गए। अगले दिन दोनों पक्षों के लोग मंदिर के सामने पहुंचे और ताला खुला तो लोगों की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। शिव लिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में रेहटी ग्राम की तरफ झुक गया था। उसी रूप में शिव लिंग आज भी है, तभी से उस शिव मंदिर को रेहटी गांव में माना गया।
रहस्यमयी है कुंड
त्रिलोचन शिव मंदिर के सामने पूरब दिशा में रहस्यमय ऐतिहासिक कुंड है जिसमें हमेशा जल रहता है। बताते हैं कि इस कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है। इस कुंड का संपर्क जल द्वारा अंदर से सई नदी से है जो वहां से करीब 9 किमी दूर है। इस संबंध में कहा जाता है कि एक बार कुंड की खुदाई प्रशासन की तरफ से हुई थी, जिसमें सेवार नामक घास मिली। यह घास नदी में ही पायी जाती है, तभी से अनुमान लगाया कि कुंड का जल स्रोत अंदर ही अंदर जाकर सई-गोमती संगम स्थल से मिला हुआ है।
सर्प करते हैं रक्षा
कहा जाता है कि मंदिर की रक्षा स्वयं बाबा भोलेशंकर करते हैं। एक बार की बात है कि शिव लिंग पर लगे सर्प को समीपवर्ती मकरा गांव के एक व्यक्ति ने चुरा लिया। फिर वह विक्षिप्त हो गया और चिल्लाता रहा कि मुझे सर्प दौड़ा रहा है। वह मुझे काट लेगा। परेशान होकर उसके घर वालों ने मंदिर प्रबंध तंत्र को उससे अधिक वजनी चांदी के सर्प को बनवाकर दिया तब जाकर उसकी हालत में सुधार हुआ। इसी तरह मंदिर का घंटा चुराकर चोर समीपवर्ती त्रिलोचन महादेव रेलवे स्टेशन पहुंचे। जब ट्रेन आई तो चोर उसे उठाकर ट्रेन पर नहीं रख पाए।
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