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जौनपुर। आदि गंगा गोमती के दोनों छोरों पर आबाद जनपद जौनपुर जहां ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण जनपदों में शुमार किया जाता है। वहीं इस जनपद का धार्मिक महत्व भी इतिहास के आयने में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है। महर्षि यमदग्नि की तपोभूमि तो भगवान परशुराम की मातृभुमि मानी जाने वाली यह धरती अपने दामन में अनेको धार्मिक महत्व समेटे हुए है। देश ही नहीं विश्वपटल पर धार्मिक शौहार्द और गंगा जमुनी तहजीब के लिए ख्याति प्राप्त इस जनपद में अनेको धार्मिक स्थल व धार्मिक महत्ताएं आज भी इसे प्रमाणित कर रही है। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर दक्षिणी पूर्वी छोर पर स्थिति त्रिलोचन का महादेव मंदिर प्राचीन काल से आज भी अपनी महत्ता के लिए जाना एवं पहचाना जाता है। यहां के बारे में कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ यहां स्वयं-भू है। यहां पर उभरा शिवलिंग हर्ष काल को चिन्हित करता है। इस शिवलिंग पर नीचले भाग पर भगवान भोलेनाथ की स्पष्ट तस्वीर देखी जा सकती है जो किसी दुनियावी कारीगर द्वारा नहीं बनायी गयी। इतना ही नहीं इतिहास में यह भी वर्णित है कि यहां स्थित ब्राहृ कुण्ड का प्रयोग स्वयं ब्राहृा जी हवन पूजन के लिए करते थे।
जौनपुर। आदि गंगा गोमती के दोनों छोरों पर आबाद जनपद जौनपुर जहां ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण जनपदों में शुमार किया जाता है। वहीं इस जनपद का धार्मिक महत्व भी इतिहास के आयने में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है। महर्षि यमदग्नि की तपोभूमि तो भगवान परशुराम की मातृभुमि मानी जाने वाली यह धरती अपने दामन में अनेको धार्मिक महत्व समेटे हुए है। देश ही नहीं विश्वपटल पर धार्मिक शौहार्द और गंगा जमुनी तहजीब के लिए ख्याति प्राप्त इस जनपद में अनेको धार्मिक स्थल व धार्मिक महत्ताएं आज भी इसे प्रमाणित कर रही है। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर दक्षिणी पूर्वी छोर पर स्थिति त्रिलोचन का महादेव मंदिर प्राचीन काल से आज भी अपनी महत्ता के लिए जाना एवं पहचाना जाता है। यहां के बारे में कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ यहां स्वयं-भू है। यहां पर उभरा शिवलिंग हर्ष काल को चिन्हित करता है। इस शिवलिंग पर नीचले भाग पर भगवान भोलेनाथ की स्पष्ट तस्वीर देखी जा सकती है जो किसी दुनियावी कारीगर द्वारा नहीं बनायी गयी। इतना ही नहीं इतिहास में यह भी वर्णित है कि यहां स्थित ब्राहृ कुण्ड का प्रयोग स्वयं ब्राहृा जी हवन पूजन के लिए करते थे।

त्रिलोचन बाजार के उत्तरी दिशा में स्थित यह विशाल शिवमंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है जहां स्थिति शिवलिंग प्रकाश में आने के पीछे एक बड़ी कहानी है। बताते है कि एक गाय किसी जमाने में अपने दूध से उक्त स्थल पर जाकर शिवअर्चन करती थी। जिसे देख क्षेत्र के लोगों ने उक्त स्थल का खुदाई की उत्खनन के दौरान शिवलिंग का दर्शन हुआ तो धार्मिक आस्था से ओत प्रोत श्रद्धालुओं ने एक विशाल शिवमंदिर का निर्माण कराया। उक्त स्थल के सामने एक हवन कुण्ड भी पाया गया। धर्मावलम्बियों के मुताबिक यह क्षेत्र काशी खण्ड पीठ के अस्सी कोश की प्रक्रिमा में आता है। जिससे यह स्पष्ट है कि यहां वहीं कुण्ड है जिसके बारे में वेदों और कुराणों में लिखा गया है कि स्वयं ब्राहृा जी हवन के लिए आया करते थे। इस कुण्ड के दक्षिणी और पश्चिमी कोने पर एक अन्य कुण्ड पिलपिलान कुण्ड के नाम से जाना जाता है इस कुण्ड के भरे जल के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है।
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