- राज्य सरकार के बेरुखी पर जतायी नाराजगी
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कृष्ण कुमार वर्मा
केराकत, जौनपुर। आज का दिन हर भारतवासियों के लिए गर्व करने का दिन है आज के दिन हर भारतवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। आज की तारीख भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नों में चार चांद लगाती हुए नजर आती है। हम बात कर रहे हैं 26 जुलाई 1999 में जब पाकिस्तान की ओर से कारगिल सीमा की तरफ बड़ी संख्या में घुसपैठ कर सीमा के अंदर दाखिल होने की नापाक हरकत पाकिस्तान की ओर से की गई। भारतीय फौज ने पाकिस्तानी सैनिकों को उल्टे पांव लौटने पर मजबूर कर दिये। भारतीय फौज टाइगर हिल के चोटी पर तिरंगा झंडा फहरा कर देश को गौरवान्वित कर कभी ना भूलने वाला इतिहास लिख दिये।
केराकत तहसील के वीर जवान जो देश के लिए शहीद हुए उनके परिवार का गर्व व दर्द कुछ इस तरह बयां हुआ।
केराकत तहसील से 6 किलोमीटर दूर भौरा ग्राम निवासी शहीद संजय सिंह पुत्र श्याम नारायण सिंह ने भी अपनी शहादत देकर वीर शहीदों के इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शहीद के पिता श्याम नारायण सिंह से जब बात की गई तो उनका भी दर्द राज्य सरकार के उदासीन रवैया के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए छलक उठा। कहा कि बेटे की शहादत पर हमें गर्व होता है। बेटे के शहीद होने पर तत्कालीन सांसद रामचरित्र निषाद ने शहीद की पत्नी यानी हमारी बहू को पेट्रोल पंप या नौकरी दिलाने का वादा किया पर अभी तक कुछ नहीं किया गया। शहीद बेटे के नाम की मूर्ति स्थापना, तालाब का नामकरण, मार्ग का नामकरण भी नहीं किया जबकि गेट संबंध में मैंने तहसील से लेकर जिले तक ज्ञापन दिए पर अभी तक किसी भी प्रकार की कोई हरकत ना शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के द्वारा की गई। शहीद के पिता श्यामनरायन जी आंखों में पुत्र के प्रति गर्व व गम के आंसू छलकने लगे। उन्होंने कहा कि जब तक मेरी सांस में सांस है तब तक मैं अपने शहीद बेटे के लिए तहसील से लेकर जिले तक का चक्कर काटता रहूंगा। वहीं अमर शहीद संजय सिंह के भाई सीआरपीएफ में तैनात सुधीर सिंह का कहना हैं कि हमारे भाई अमर शहीद है उनके इस बलिदान पर पूरे देश को गर्व है।
केराकत तहसील से 5 किलोमीटर दूर तेजपुर ग्राम निवासी शहीद धीरेंद्र प्रताप यादव पुत्र बाबूराम यादव ने भी अपनी शहादत देकर अमर शहीदों के इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शहीद की मां शिवताजी देवी आज के दिन अपने शहीद बेटे के फोटो को देखकर उनकी आंखें भर आती है। शहीद की मां ने बताया कि मुझे अपने बेटे पर गर्व है शहीद के बड़े भाई त्रिभुवन यादव जी ने बताया कि केंद्र सरकार जो जो वादे किए थे उसे पूरा किया लेकिन राज्य सरकार जितने भी वादे किए उसे पूरा नहीं किया गया। ना गैस एजेंसी, ना पेट्रोल पंप दिया गया। जौनपुर से चंदवक की ओर जाने वाले रोड हनुमान नगर तिराहे पर उनकी मूर्ति लगवाने के लिए हम लोगों ने केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक के चक्कर काटे आखिर में लाचार होकर अपने पैसों से (2,00,000 लाख) मूर्ति की स्थापना कराई। यहां तक कि शहीद परिवार के घर जाने के लिए रोड का निर्माण भी नहीं कराया गया। शहीद के भाई त्रिभुवन यादव ने राज्य सरकार की बेरुखी पर काफी नाराजगी जताई।
जौनपुर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर केराकत तहसील क्षेत्र के वीर जवान ने अपनी शहादत देकर अमर शहीद इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शहीद परिवार का दर्द अपने बेटों को याद में अक्सर 26 जुलाई को नम हो जाती है लेकिन वह गर्व से कहते हैं कि बेटे ने जो देश के लिए कुर्बानी दी है उन्हें उस पर नाज है इसी कड़ी में अकबरपुर निवासी श्याम नारायण सिंह के पुत्र जगदीश सिंह ने शहादत देकर अमर हो गए। पूरे गांव को उन पर गर्व है। आज भी शहीद जगदीश सिंह की पत्नी मीना सिंह पति की सपनों को साकार करने के लिए भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा में जुटी हुई हैं। शहीद के पिता श्याम नारायण सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया कि जब शहादत की सूचना गांव अकबरपुर पहुंची तो पूरा गांव गम में डूब गया उस समय सांत्वना देने कुछ जनप्रतिनिधि शासन—प्रशासन के अधिकारी घर आए थे। उन्होंने तरह—तरह की घोषणाएं की थी लेकिन आज तक में पूरी नहीं हो सकी शहीद के नाम पर केराकत सुल्तानपुर देवगांव मार्ग का नाम रखने, उनकी प्रतिमा स्थापित करने तथा शहीद परिजन को पेट्रोल पंप देने आदि घोषणाओं पर अमल अभी तक नहीं हो सका। 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक राजनेताओं अधिकारियों की तरफ से कोई भी परिजनों का हाल जानने का प्रयास नहीं किया हालांकि मदद के नाम पर 10 बीघा जमीन दी गई जो नाले में है। श्याम नारायण सिंह का कहना हैं कि जो जमीन प्रशासन उपलब्ध कराया है वह सिर्फ कागजों में है मौके पर जमीन का कोई उपयोग नहीं हो सकता।
केराकत तहसील में एक ऐसा परिवार जहां लगातार 3 पीढ़ियों से देश की सेवा में कार्यरत है चाहे वह 65 की लड़ाई हो या 71 की आज भी परिवार का एक सदस्य देश सेवा कर रहा है। हम बात कर रहे हैं शहीद जावेद खान के परिवार की। शहीद जावेद खान की शहादत की खबर जब उनके पैतृक गांव केराकत में हुई तो पूरा केराकत बेटे की शहादत में अपने लाल को एक झलक पाने के लिए बेक़रार हो गये। भारत मां की जय की उद्घोष से पूरा केराकत नगर गूंज उठा पर अफसोस होता है सरकार की बेरुखी रवैया को देखकर जहां बेटा देश के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिये वहीं शहीद जावेद खान की कब्र को अगर देखा जाए तो शर्मसार करने वाला एहसास होगा। शहीद जावेद खान की कब्र को देखकर अफसोस होता हैं कि सरकार शहीदों की शहादत का कैसा तोहफा देती है। शहीद जावेद खान के परिवार का कहना हैं कि हमें सरकार से किसी तरह का सहायता राशि नहीं चाहिए पर हमारे भाई के लिए सरकार कुछ ऐसे कड़े कदम उठाएं ताकि जन्म जन्मांतर तक शहीद जावेद खान की मिसाल आने वाली पीढ़ियां देती रहे शहीद परिवार से कार्यरत सेना में जैनुल आबदीन ख़ान, याहिया खान, अशफाक खान, शहीद जावेद खान और मौजूदा देश की सेवा कर रहे हैं आसिफ खान।
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