#TeamJaunpurLive
विनय सिंह
चंदवक, जौनपुर। दिल्ली विश्वविद्यालय, नॉर्थीस्टर्न विश्वविद्यालय, बॉस्टन विश्वविद्यालय एवं बॉस्टन कॉलेज द्वारा आयोजित शोध परियोजना 'नेटवर्कस और वै·िाक स्वास्थ्य-विकासशील देशों में महिलाओं का सामाजिक सम्बंध, प्रजनन, स्वास्थ्य एवं कल्याण"" के अंतर्गत एक कार्यशाला का आयोजन सोमवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डोभी में हुआ। इस कार्यशाला में भारतीय एवं अमरीकी शोध कर्ताओं ने मुख्यत: नवविवाहित महिला स्वास्थ्य में सुधार के लिए परिवार नियोजन के विविध तरीक़ों एवं बच्चों में समुचित अंतर को बढ़ावा देने पर बल दिया।
2018 में डोभी के 27 ग्रामों में 671 नवविवाहित महिलाओं के साथ किये गये स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं में प्रजनन स्वास्थ्य विषय की जानकारी का अभाव है। हर तीन में से एक महिला इन निजी विषयों पर अपने पति और सास के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति से चर्चा करने में संकोच करती हैं। कार्यशाला में सास-बहू के पारस्परिक विचार-विमर्श के महत्व पर जोर दिया गया। साथ ही महिला कल्याण के लिए पुरुषों की सहभागिता बढ़ाने के लिए शोधकर्ताओं ने नीति-निर्माताओं, सरकारी परियोजनाओं एवं जन-मानस का आह्वान किया। लगभग 200 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं ने इस कार्यशाला में अपने अनुभव एवं संस्मरण शोधकर्ताओं से साझा किए।
विनय सिंह
चंदवक, जौनपुर। दिल्ली विश्वविद्यालय, नॉर्थीस्टर्न विश्वविद्यालय, बॉस्टन विश्वविद्यालय एवं बॉस्टन कॉलेज द्वारा आयोजित शोध परियोजना 'नेटवर्कस और वै·िाक स्वास्थ्य-विकासशील देशों में महिलाओं का सामाजिक सम्बंध, प्रजनन, स्वास्थ्य एवं कल्याण"" के अंतर्गत एक कार्यशाला का आयोजन सोमवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डोभी में हुआ। इस कार्यशाला में भारतीय एवं अमरीकी शोध कर्ताओं ने मुख्यत: नवविवाहित महिला स्वास्थ्य में सुधार के लिए परिवार नियोजन के विविध तरीक़ों एवं बच्चों में समुचित अंतर को बढ़ावा देने पर बल दिया।
2018 में डोभी के 27 ग्रामों में 671 नवविवाहित महिलाओं के साथ किये गये स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं में प्रजनन स्वास्थ्य विषय की जानकारी का अभाव है। हर तीन में से एक महिला इन निजी विषयों पर अपने पति और सास के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति से चर्चा करने में संकोच करती हैं। कार्यशाला में सास-बहू के पारस्परिक विचार-विमर्श के महत्व पर जोर दिया गया। साथ ही महिला कल्याण के लिए पुरुषों की सहभागिता बढ़ाने के लिए शोधकर्ताओं ने नीति-निर्माताओं, सरकारी परियोजनाओं एवं जन-मानस का आह्वान किया। लगभग 200 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं ने इस कार्यशाला में अपने अनुभव एवं संस्मरण शोधकर्ताओं से साझा किए।
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