ऋण रहे उतार ! | #NayaSaberaNetwork

देकर के संरक्षण ।
ऋण रहे उतार ।।
जात-जात चिल्लाकर ।
भुजाओं की ललकार ।।
असर ना तलब का ।
वंश पर है आंच ।।
मर-मिटना इस खातिर ।
समेटो उंगली पांच ।।
आदमी है अपना ।
भले किया गुनाह ।।
बिना शर्त समर्थन ।
कर्तव्य है पनाह ।।
पीछे अब हटने का ।
पैदा नहीं सवाल ।।
सोहबत है हमारी ।
जो ये कदमताल ।।

कृष्णेन्द्र राय
Krishnendra Rai

Krishnendra Rai


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