रक्सौल अनुमंडल समेत पूरे बिहार में छठ महापर्व की धूम | #NayaSaberaNetwork

  • व्रतियों का दृढ़ विश्वास : छठी मईया की कृपा से होगा कोरोना का नाश
डॉ. स्वयंभू शलभ
लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ का आज दूसरा दिन है। आज के दिन की पूजा जिसे 'खरना' कहा जाता है इसके लिये आम की लकड़ी, दूध, गुड़ आदि सामग्री की खरीददारी को लेकर आज सुबह से ही सड़कों पर भीड़भाड़ है। हर जगह मिट्टी के बर्तन, सूप, दउरा, फल फूल और पूजन सामग्री की दुकानें सज गयी हैं। दिनभर लोग खरीददारी में जुटे हैं।

आज सारे दिन उपवास के बाद रात में पूजा की जाती है। 'खरना' में खीर, पूड़ी, केला और मेवा का भोग लगाया जाता है। यहां से व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाता है।
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संध्या समय से सभी सगे संबंधियों एवं इष्ट मित्रों को प्रसाद के लिये एक दूसरे के घर जाने का जो सिलसिला शुरू होता है वह देर रात तक चलता रहता है। छठ पूजा में इस प्रसाद का विशेष महत्व है। हर आदमी इस प्रसाद के लिए इच्छुक रहता है। जिसे भी इस प्रसाद के लिए आमंत्रित किया जाता है वह सपरिवार उपस्थित होना अपना सौभाग्य समझता है। यह सहभागिता आपसी प्रेम और सौहार्द का यह एक सुंदर प्रतीक है।

जगह जगह घाटों पर पंडाल लग गए हैं। कई लोग व्रतियों को वस्त्र और पूजा सामग्री वितरण करने में भी जुटे हैं। टैंकरों से सड़कों की धुलाई की जा रही है।

घाटों की सफाई, सुरक्षा व्यवस्था और सजावट में नगर प्रशासन के साथ विभिन्न सामाजिक संगठन भी लगे हैं। भक्ति और उत्साह का अद्भुत वातावरण है। छठी मईया के गीतों से हर गांव शहर गुंजायमान है।

इस बार कोरोना महामारी को लेकर थोड़ी असमंजस जरूर बनी रही। छठ व्रती अपने घरों पर ही छठ पूजा करें और वहीं अर्घ्‍य भी दें, सरकार की ओर से यह अपील भी जारी की गई है। घाट पर किसी सांस्‍कृतिक कार्यक्रम या मेले के आयोजन की अनुमति भी नहीं है। कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है इस नाते भीड़भाड़ से बचना और सामाजिक दूरी कायम रखना जरूरी है। पर लोक आस्था हर भय के ऊपर भारी है। गांव हो या शहर लोगों के उत्साह में कहीं कोई कमी दिखाई नहीं देती। लोगों के मन में यह विश्वास भी प्रबल है कि यदि कोरोना कहीं है तो छठी मईया की कृपा से उसका अंत हो जाएगा।

हालांकि शहरों में घाटों पर बढ़ती भीड़ के कारण कई लोग अपने छत पर पानी का कुंड बनाकर भी छठ पूजा करने लगे हैं। पर यह पूजा चाहे नदी या तालाब के किनारे हो या घर की छत पर इसकी रौनक देखते ही बनती है। घर का कोई सदस्य बाहर भी हो तो इस मौके पर घर जरूर वापस आता है। सारे पर्व त्योहारों में यही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें व्रती के साथ परिवार के प्रत्येक सदस्य सहयोग में जुटे रहते हैं। 

सुबह से ही नदी के घाटों पर अनोखा दृश्य नजर आता है। कई व्रती घाट पर ही स्नान करते हैं और कई लोग पात्रों में जल भरकर अपने अपने घर लेकर आते हैं। श्रद्धाभाव ऐसा कि कई लोग सिर पर कलश या गागर में जल भरकर पैदल घर तक आना अपना सौभाग्य समझते हैं।

लोक परंपरा से जुड़े इस महापर्व में कल अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद परसों उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

रखिहऽ आसीस मईया करीले जतनवा...उगिहऽ सुरुज देव हमरे अंगनवा...

छठी मईया सबों का कल्याण करें...

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