बरहपुर घाट पर उमड़ी भीड़, सूप में ठेकुआ फल सजाकर डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य | #NayaSaberaNetwork

  • पतरहीं पुलिस चौकी क्षेत्र के बरहपुर घाट पर उमड़ी श्र्द्धालुओं की भीड़
कृष्णा सिंह
पतरहीं, जौनपुर। भगवान सूर्य की उपासना के महापर्व छठ के तीसरे दिन नदी घाटों, तालाबों और अन्‍य जलाशयों में अर्घ्‍य देने व्रतियों का सैलाब उमड़ पड़ा। अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य के साथ देकर व्रती अपने घर-समाज के लिए खुशहाली की प्रार्थना कर रहे हैं। गाँव में छठ पर्व की रौनक से अमीर-गरीब हर वर्ग का जीवन रोशन हो रहा है। लोग पूरी श्रद्धा, भक्ति, आस्‍था और उमंग से पर्व को मना रहे हैं। घरों से लेकर घाट तक छठी मईया के सुरीले लोकगीतों गूंज रहे हैं। हालांकि प्रशासन ने कोरोना काल में मनाए जाने वाले छठ पर्व के लिए गाइडलाइन जारी किए हैं। इसके बावजूद भी शोशल डिस्टेसिंग का ख्याल नही रखा जा रहा है।
बरहपुर घाट पर उमड़ी भीड़, सूप में ठेकुआ फल सजाकर डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य | #NayaSaberaNetwork


बड़ी संख्‍या में लोगों ने घाट पर  ही भगवान भास्‍कर को अर्घ देने की तैयारी की है। दो घाटों पर एहतियात के साथ सूर्य उपासना की तैयारी की गई है। घाटों पर  साफ-सफाई से लेकर आकर्षक रोशनी की व्‍यवस्‍था की गई है। पूरे     घाट पर सुशील सिंह (दादा) बरहपुर के द्वारा स्‍वच्‍छता का विशेष ध्‍यान रखा गया है। दरअसल, लोक आस्‍था का यह पर्व इसलिए तो अनूठा है कि इसमें प्रकृति की पूजा, प्राकृतिक चीजों के व्‍यापक प्रयोग की कुशलता, शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य की सीख, स्‍वच्‍छता, संस्‍कृति , भाईचारा और आस्‍था का बेजोड़ मेल है।  आज शुक्रवार (20 नवंबर) को छठ व्रती डूबते सूर्य को अर्घ देंगे।  कल शनिवार को उगते सूर्य को अर्घ देकर पूजा संपन्‍न होगी । इसके पहले श्रद्धालुओं ने बुधवार को नहाय-खाय और गुरुवार को खरना पूजा किया।प्राचीन कथा के मुताबिक प्रियंवद नाम का एक राजा था। उनकी शादी मालिनी नाम की स्त्री से हुई। शादी के सालों बाद भी प्रियंवद को संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इस वजह से वह बहुत दुखी रहा करते थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से विचार विमर्श कर यज्ञ करवाने का निश्चय किया।यज्ञ की आहुति की खीर को महर्षि कश्यप ने राजा प्रियंवद की पत्नी को दिया और उस खीर के प्रभाव से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन दुख की बात यह थी कि वह मरा हुआ पैदा हुआ। पुत्र वियोग में जब राजा ने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया तो तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई और उन्हें पुत्र को जीवित करने के लिए छठ व्रत करने को कहा।इस व्रत के प्रभाव से राजा प्रियंवद का पुत्र जीवित हो गया। तब से ही छठ पूजा मनाई जा रही है। बताया जाता है कि यह ही छठी माता हैं। सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से इन्हें छठी मैया कहकर पुकारा जाता है।छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक‌ माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।

बताया जाता है कि छठ व्रत संतान की रक्षा और उनकी जिंदगी में तरक्की और खुशहाली लाने के लिए किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि सच्चे मन‌ से छठ व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों यज्ञ करने से भी ज्यादा बल प्राप्त होता है। कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं।

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