अमित शुक्ला
मुंगराबादशाहपुर, जौनपुर। भगवान अपने भक्त का उद्धार तो करते ही है लेकिन जो भगवान के भक्त का चरण पकड़ लेता है उसका उद्धार पहले करते है। गजेन्द्र मोक्ष की कथा का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने कहा गजेन्द्र का उद्धार करने से पहले भगवान ने ग्राह का पहले उद्धार किया। गजेन्द्र का साथ जब उसकी पत्नी बच्चों ने छोड़ दिया और वह डूब रहा है और ग्राह उसको जल में नीचे खींचे जा रहा है तब उसने भगवान को पुकारा हे गोविन्द राख शरण अब तो जीवन हारे। भगवान दौड़ते हुए आए और गजेन्द्र का उद्धार किया लेकिन उसके पहले उस ग्राह का भी उद्धार किया। उक्त उद्गार नगर के कटरा मोहल्ले में स्थित सृष्टि पैलेस में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन रविवार की शाम श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए पुष्कर धाम से पधारे महामंडलेश्वर दिव्य मोरारी बापू ने व्यक्त किया।
श्री मोरारी बापू ने कहा कि अन्त समय में जो वृत्ति होती है उसी के अनुरूप अगला जन्म होता है। भरत जी का मृग के मोह में फंसकर मृगयोनि में जन्म, पुनः ब्राह्मण कुल में जन्म, जड़भरत और राजा रहुगण की भेंट, संवाद, राजा राहुगण को उपदेश, भरत बंश का वर्णन किया। प्रहलाद के जन्म की कथा बताते हुए कहा कि जिस दिन प्रहलाद के जन्म का संयोग हुआ हिरण्यकश्यप की पत्नी गयाधु ने तोता द्वारा नारायण वाचन प्रसंग को निमित्त बनाकर 108 बार नारायण नाम का जप करवा दिया।
उन्होंने हिरण्यकश्यप की तपस्या वर प्राप्ति, प्रहलाद के वध का प्रयत्न, नृसिंह भगवान के प्राकट्य की कथा सविस्तार सुनाया। स्वामी जी ने बताया आठवें संकल्प में गजेन्द्र मोक्ष की कथा के बाद समुद्र मन्थन की कथा आती है। मन्दराचल पर्वत को धारण करने के लिए भगवान का कच्छप अवतार हुआ। समुद्र मन्थन में 14 रत्न निकले पहले हलाहल विष निकला इसे भगवान शंकरजी ने पान करके नीलकण्ठ बन गए, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी और उचसेरवा घोड़े को इन्द्र ने ले लिया। मदिरा को दैत्यों ने ले लिया। कार्तिक अमावस्या के दिन लक्ष्मी जी प्रकट हुई उन्होंने भगवान नारायण को वरण किया। मुख्य यजमान पूर्व चेयरमैन कपिल मुनि व सुरेश सेठ रहे। संचालन वरिष्ठ संत घनश्याम दास जी महाराज ने किया।
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