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खुलेआम अपशब्द
मैंने खुद ही अपनी।
की उजागर पोल।।
खुलेआम अपशब्द।
सुनें हमारे बोल।।
कर मर्यादा तार-तार।
आपा मैंने खोया।।
जनसेवक मैं आपका।
शब्दों को पिरोया।।
हो जाती है भूल-चूक।
करना पर इंसाफ।।
आपके ही हाथ अब।
दंड मिले या माफ।।
करना था जो व्यक्त।
दिया उड़ेल समूल।।
निकला तीर कमान।
ठहरे कुछ उसूल।।
कृष्णेन्द्र राय
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