किसान आंदोलन : क्या नौवें चरण की बातचीत भी आज रहेगी बेनतीजा ? | #NayaSaberaNetwork

किसान आंदोलन : क्या नौवें चरण की बातचीत भी आज रहेगी बेनतीजा ? | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
नई दिल्ली: किसान आंदोलन (Farmer's Protest) को 50 दिन हो चुके हैं। कृषि कानूनों (Farmer's Laws) के खिलाफ शुरू हुए सरकार और किसान संगठनों (Farmer's Organisation) के बीच आज नौवें चरण की बातचीत हो रही है। हालांकि मुद्दे का कोई हल नहीं निकल पाएगा, इसकी उम्मीद अब भी नहीं है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन कर दिया है, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं। ऐसे में शुक्रवार यानी आज एक बार फिर सरकार और किसानों के बीच बातचीत होनी है। किसान नेताओं ने फिर इस बात पर जोर दिया है कि वो इन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। ऐसे में नौवें चरण की बातचीत के बावजूद इस बात पर अनिश्चितता बनी हुई है कि इस मुद्दे पर कोई हल निकलेगा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कृषि कानूनों के खिलाफ डाली गई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद इन पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया था। किसानों ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि वो बातचीत के लिए सरकार के पास जाने को तैयार हैं लेकिन वो किसी समिति के सामने नहीं जाएंगे, क्योंकि 'कानून सरकार का बनाया हुआ है और अदालत कोई कानून रद्द नहीं कर सकती है।'
सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद
वहीं, गुरुवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि उन्हें शुक्रवार को हो रही बातचीत से सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद है। वो पहले भी कई बार केंद्र सरकार की इन बैठकों से हल निकलने की आशा जता चुके हैं। किसान नेताओं ने गुरुवार को कहा था कि वे सरकार के साथ नौवें चरण की बातचीत में हिस्सा लेने जा रहे हैं, हालांकि उन्हें इस बातचीत से ज्यादा उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे इन कानूनों को वापस लिए जाने से कम किसी भी फैसले के लिए राजी नहीं होंगे।
समस्या सुलझाने की सरकार की नहीं कोई मंशा
भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा था कि उन्हें बैठक से ज्यादा उम्मीद नहीं है क्योंकि 'सरकार उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल का हवाला देगी। हमारी समस्या सुलझाने की सरकार की कोई मंशा नहीं है।' सिंह ने कहा था, ‘हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और हमारे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए।' 
समिति के सदस्य और शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट ने कहा कि हो सकता है कि किसानों के साथ सरकार की आज आखिरी बैठक हो, जिसके बाद किसानों को समिति के पास भेजा जाए।
नहीं होगी निष्पक्ष बातचीत
किसान संगठनों ने समिति गठित होने के पहले ही कहा था कि वो समिति गठित किए जाने के पक्ष में नहीं हैं और अगर कोई समिति बनाई जाएगी तो वो उसके सामने नहीं जाएंगे। अब जब कोर्ट ने समिति बना दी है तो उनका कहना है कि समिति के हर सदस्य इन कानूनों के खुलेआम समर्थक हैं, ऐसे में निष्पक्ष बातचीत नहीं होगी।
किसानों ने पिछले हफ्ते ट्रैक्टर रैली निकाली थी और कहा था कि अगर 26 जनवरी से पहले उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो राजपथ पर होने वाली परेड के समानांतर अपनी बड़ी ट्रैक्टर रैली निकालेंगे। केंद्र सरकार ने यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया था, जिस पर कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया था। सोमवार को इस पर सुनवाई होनी है।
बता दें कि हजारों की संख्या में पंजाब, हरियाणा एवं अन्य राज्यों के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पिछले लगभग 50 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि सरकार अपने तीन नए कृषि सुधार कानून वापस ले और उन्हें उनके फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दे।
समिति की पहली बैठक 19 जनवरी को
हो सकता है कि किसान संगठनों की सरकार के साथ आज आखिरी बैठक हो क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की समिति की पहली बैठक 19 जनवरी को होने की संभावना है। यह समिति इन कानूनों पर चर्चा करने के बाद कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। सरकार भी इस रुख पर अड़ी हुई है कि वो इन कानूनों को वापस नहीं लेगी। उसका जोर है कि ये कानून किसानों के हित में लाए गए हैं और प्रदर्शन कर रहे किसानों को इन कानूनों को लेकर गुमराह किया जा रहा है।

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