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गंगा!
बहती है जो गंगा,उसकी एक कहानी है,
मानों तो है माँ वो, न मानों तो पानी है।
राजा भगीरथ ने उसे धरती पर लाया है,
शिव की जटाओं से, गिरता वो पानी है।
गंगोत्री से निकली,मिलती गंगासागर में,
संस्कार देती हमें,कबीर की वो वाणी है।
खेत-खलिहानों की, उससे हरियाली है,
गौर से अगर देखो, लहरों में जवानी है।
कीड़े नहीं पड़ते, उस गंगा के पानी में,
औषधि गुण से भरी, वो तो वरदानी है।
गन्दा करो न उसे,वह तो पापनाशिनी है,
करती निहाल सबको,वह जग तारिणी है।
दौलत पहाड़ों का, भले तेरे आंगन हो,
नहाया न गंगा जो,वो धड़कन बेगानी है।
सुबह-शाम सोने की, रात-दिन चांदी की,
चंचल बदन उसका,वो तो आसमानी है।
गंगा का दर्द समझो, पुरखों ने पूजा है,
वेदों में भी देखो, उस माँ की कहानी है।
कोई वजू करता, कोई संगम नहाता है,
नभ से है उतरी वो, बात ये पुरानी है।
पी करके आंसू वो, घुट-घुट के जीती है,
गंगा को ना बेचो,वो ब्रह्मा की निशानी है।
रामकेश एम. यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई
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