Adsense

तितलौकी | #NayaSaberaNetwork

तितलौकी | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
बँसवारी में चिड़ियों का कलरव,कोयल की मीठी सुरीली तान, भ्रमर का गुंजार,फूलों का सौन्दर्य इत्यादिक प्राकृतिक उपादान उस व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर नहीं खींचते जिसकी जेब और पेट दोनों खाली हो।जिनका पेट भी भरा हो और तिजोरी भी ये मात्र उनको सुख और आनन्द प्रदान करते हैं।सुमेर को तो गदराई मटर के बैंगनी सफेद फूल भी आनन्द नहीं देते। पता नहीं मोर,साँड़,और नीलगाय से बच कर कुछ मिलेगा भी कि नहीं।पुरखों की बनाई भूमि भी बाँटते बाँटते नाम मात्र की रह गई है।ले देकर पोस्टमैन की मामूली सी नौकरी।जिसका वेतन पूरे देश में सबसे कम।उस पर नए जमाने का सत्यानाश हो जिसने मनीऑर्डर,बीमा भेजने की प्रथा ही लुप्त कर दी।ये सब आता था तो जिसका होता था वो कुछ न कुछ दे देता था।वो भी ऑनलाइन के जमाने में बन्द हो गया। नंगा नहाए क्या और निचोड़े क्या? ठकुराई तो बस नाम के साथ लिखने के लिए बची है। उस पर ऊपर वाले की ऐसी मार की बेटे की प्रतीक्षा में तीन तीन बेटियाँ पहले आ गईं।तब जा के बेटा हुआ।अब जितने फूल खिले सब महादेव को ही चढ़े।जो कुछ भी तुलसी पत्र जुटे वो बेटे से बचे तो किसी और को मिले।जो बड़ी हो गईं थीं वो तो सब्र कर लेती थीं। दुलारे का भाई था।पर छोटी वाली की जीभ नहीं मानती थी।नतीजा ये कि देख कर रोने लगती थी और फिर गाल पर दो चटकना प्रसाद पा जाती।
बड़ी बेटी की शादी जरूरी हो गई थी।ज्यादा दिन रोकना सम्भव नहीं था।क्योंकि ज्यादा उमर हो जाने पर ज्यादा दहेज।चाहे जैसी आर्थिक स्थिति रहे पर दहेज जरूर चाहिए और झूठी शान दिखाने के लिए अनाप शनाप खर्च जरूर करेंगे।एक दिन का राजा बनने का पता नहीं कौन सा सुख है कि कोई छोड़ना ही नहीं चाहता।भले ही जिसे एक दिन के लिए प्रजा बनाते हैं उसी से कर्ज लेना पड़े। पाँच हजार नगद और गले की जंजीर पर थोड़ी दूर पर ही मामला तय हो गया।लड़का देखने में भी ठीक था और कमाता भी था।कुल मिलाकर पत्नी के आधे गहनों की बलि दूसरी बेटी की शादी ने तो कमर ही तोड़ दी।शेष बचे गहने और सारी जमा जथा इसमें स्वाहा हो गई।अब घरैतिन दुर्गा का एक ही काम था।दिन रात बेटियों को गरियाना।दो तो चली गईं।तीसरी का नाम ही उसने रँड़वा धरा दिया था।एक दिन डाक बाँट कर लौटे तो देखे कि गुड़िया की मरम्मत चल रही है।बिगड़ कर बोले – 
बेटी है तो क्या मार डालोगी? सब अपना भाग्य लेकर इस दुनिया में आते है।कोई किसी का दिया नहीं खाता। खिलाने वाला सिर्फ एक है जो सबको खिलाता है। 
दुर्गा बोली – तो जाये न ।उसी से माँग कर खाए।मेरे बेटे को नजर क्यों लगा रही है।सब लेई पूँजी तो दो राँड़ों के विवाह में उठ गई। अब इसकी तेरही कैसे होगी? 
गुड़िया- चाहे जितनी गाली दे लो पर इतना जान लो,इतने दुलार के बाद तितलौकी नीम पर ही चढ़ती है।
दुर्गा – चुप भतारकाटी।तू देख लेना ,मेरा बेटा बड़ा होकर मुझे पलकों पर रखेगा।
सुमेर महाभारत सुनने के इच्छुक नहीं थे।उठे और बड़बड़ाते हुए चौपाल की ओर चल दिए।कौन मुँह लगकर बेहुरमत हो।
समय की अपनी गति है।जो न कभी बाधित हुई है न आगे होने वाली है।पुरखों के बनाए हुए गहनों तथा अपनी अन्तिम उम्मीद भविष्य निधि के पैसे से किसी तरह तीनों बेटियों का कन्यादान करके मुक्ति पाए।बेटा भी पढ़ने जाने लगा था।अब सारा ध्यान बेटे की पढ़ाई पर था।वही आशा की किरण था।जो गरीबी में अपने से नहीं हो पाया उसकी सारी उम्मीद बेटे से लगाए बैठे थे।हाईस्कूल तक पढ़ाने के बाद किसी से सुने की बम्बई में सीएमएलटी की पढ़ाई होती है।ले जा कर नाम लिखवा दिए।अब नाम तो लिखा दिए पर खर्च कैसे चले?पेंशन में मुश्किल से दाल रोटी की गुंजाइश थी बम्बई के खर्चे की नहीं।मजबूरी में पूरी जिन्दगी गाँव में बिताने वाले सुमेर बुढ़ापे में बम्बई आ गए।अपने देश देहात के बहुत लोग भरे पड़े थे।सो खाना किसी के यहाँ और सोना किसी के यहाँ।सौ दो सौ पाँच सौ जो भी झटकोपैथी से मिल जाता बेटे के हवाले कर देते।दो साल इसी तरह निकाल दिए।लोगों को आश्चर्य होता की आकाशवृत्ति से कैसे कोई इतने बड़े महानगर में बेटा पढ़ा सकता है ? पर सुमेर यह असम्भव जैसा कार्य भी कर डाले।
महेन्द्र ने पाठ्यक्रम पूरा करके एक गुजराती मित्र के साझे में प्रयोगशाला खोल ली।लड़के के उज्ज्वल भविष्य का अनुमान कर एक वकील साहब ने अपने रिश्ते की कन्या सुमन की शादी महेन्द्र से करवा दी।दहेज भी मिला पर उतना ही जितने में शादी निपट गई। बहू विदा हो कर आ गई।अब उद्देश्य पूरा हो जाने पर सुमेर सबको ले कर वापस अपने गाँव आ गए।
ये अनुभव सिद्ध बात है कि जो मिलते ही बहुत नेह छोह लगाए,बहुत मायाजाल फैलाए वो अन्दर से कपटी ही होता है।ऐसे प्राणी को बस एक ही चिन्ता होती है कि किसका क्या मिल जाय और मैं रख लूँ।चाहे वो उसके लिए उपयोगी हो चाहे न हो।
बहू भी इसी प्रकृति की थी।जीभ पर चीनी रख कर बोलती थी।ऐसा लगता था जैसे फूल झड़ रहे हैं।पूरे परिवार के चाय पानी,स्नान भोजन की निरन्तर चिन्ता करती थी।शादी में लड़कियाँ भी आईं थीं।दुर्गा गुड़िया को सुना कर बोली – 
ले देख।मै कहती थी न कि मेरा बेटा मुझे पलकों पर बिठा कर रखेगा।बेटा तो क्या बहू भी ऐसी मिली है कि लाखों में एक।भाग्यशाली लोगों को ऐसी बहू मिलती है।
ठीक कह रही हो अम्मा।गुड़िया ने इतना ही कहा।एक तो अब ब्याहता सयानी हो गई है दूसरे भाई के ब्याह का उत्साह भी कम न था।खुशी के मौके पर उसने चुप रह जाना ही ठीक समझा।एक महीना कब बीत गया पता ही नहीं चला। बहनें भी अपने अपने घर चली गईं। महेन्द्र एक रात सुमन से बोला – 
अब मुझे वापस बम्बई जाना चाहिए। लैब पर आदमी है पर आदमी के भरोसे कारोबार नहीं छोड़ा जा सकता।पता नहीं कितना गल्ले में रखता होगा कितना अपनी जेब में।
सुमन – मुझे वापस जाना चाहिए मतलब? तुम वापस जाओगे तो मैं यहाँ कौन सी लढ़ी ढकेलूँगी ?
महेन्द्र – अरे तुम चली चलोगी तो अम्मा बाबू को कौन देखेगा।अब बूढ़े हो चले हैं दोनों।कोई तो चाहिए इनकी देख रेख के लिए।
सुमन – अच्छा।तो ये बात है।हो किस दुनिया में तुम।तुम्हारे अम्मा बाबू के लिए मैंने शादी की है क्या? इस फेर में मत रहना।ऐसी बीबी चाहिए थी तो गाँव देहात की किसी गँवार लड़की से शादी किए होते। निरे चोंच हो क्या? कैसे सोच लिए तुम की बम्बई की लड़की तुम्हारे घर रहकर गोबर उठाएगी?सौ बात की एक बात। मैं नहीं रहने वाली बस।आगे तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
महेन्द्र- तो चलो।इसके लिए महाभारत करने की जरूरत नहीं है।
और कुछ दिनों के लिए अड्डे पर आई हुई बुलबुल फिर विशाल कंक्रीट के जंगलों की ओर उड़ चली।
साल दरसाल बीतने लगे।पहले रोज फोन पर बात होती रही। हर महीने पैसे भी आते रहे।फिर धीरे धीरे बातों का सिलसिला रुकते रुकते ख़तम ही हो गया।
महेन्द्र ने एक दिन कहा – आज घर पैसा भेजना है।खेत बोए नहीं गए हैं।
सुमन – खेत से हमें क्या लेना देना है? जो उपज खाता है वो बोए चाहे न बोए।और मै पैसा देने को मना नहीं करती।पर पहले मेरा खर्चा देख लो फिर जिसे मर्जी हो उसे दो।मै रोक नहीं रही हूँ।
महेन्द्र ने मन में सोचा।हो गया कल्याण।अब इन महारानी से बचेगा ही नहीं तो किसी को क्या देना क्या लेना।कहानी ही खत्म हो गई।घर में कलह करने से अच्छा जैसे ये कहेगी वैसा ही करना पड़ेगा।निदान ये ठहरा कि अठन्नी की भी गुंजाइश नहीं रही।
यहाँ जो पेंशन आती थी उसमे भोजन का ही पूरा नहीं पड़ता था।बुढ़ापा देख रोगों की सेना भी टूट पड़ी थी।उनसे लड़ने के लिए गोली बारूद अर्थात दवा का प्रबन्ध कैसे हो? इसके अलावा दोनों अगर एक साथ बीमार हो गए तो एक लोटा पानी कौन दे। बेटियाँ सुनते ही भाग भाग कर आती थीं।और ठीक होने तक सेवा करती थीं।
रोते झींकते जिन्दगी के दिन कट रहे थे।इस बार दुर्गा बहुत गम्भीर रूप से बीमार पड़ी।खाया पिया पेट में ठहरता ही नहीं था।खाते ही उल्टी हो जाती थी।गुड़िया सुन कर आई।अम्मा की रात दिन सेवा करने लगी। शौचक्रिया बिस्तर पर ही हो जाती थी।उसे साफ करती।उल्टी कर देती तो उसे साफ करती।नहलाकर तेल लगाती। पथ्य में मूंग की दाल की खिचड़ी बना कर देती।पर वो भी हजम नहीं होती।एक ही महीने में दुर्गा नरकंकाल हो गई।हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया।कोई दवा काम ही नहीं कर रही थी। सब निराश हो गए थे।बेटे बहू को बार बार फोन किया जाने लगा।पहली बार बेटे ने फोन उठा लिया।सुमन से कहा – 
अम्मा की तबीयत बहुत खराब है।चलो घर हो आएं।
सुमन – तुम हकीम लुकमान हो।तुम्हारे जाने से ठीक हो जाएगी।आने जाने में खर्च लगेगा।पैसा है नहीं।लड़के की फीस जमा करनी है।फ्लैट की किश्त देनी है।न बाबा।नहीं हो पाएगा।
फिर महेन्द्र ने घर का फोन उठाना ही छोड़ दिया।
एक रात तबीयत ज्यादा ही बिगड़ी।दुर्गा ने गुड़िया को बुलाया और बोली –
तू सही कहती थी बेटी।मै ही नहीं समझ पाई। महेन्द्र तितलौकी ही निकला वो भी नीम की डार चढ़ा हुआ।मेरा अन्तिम समय है।इस बुढ़िया के पास तुम्हे देने को कुछ नहीं है।आशीष दे रही हूँ। दूधों नहाओ पूतों फलो।और हंस पिंजरे को तोड़ कर उड़ गया।
शिवानन्द चौबे  शिक्षक - श्री गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय सुजानगंज जौनपुर

*Ad : बीआरपी इण्टर कालेज जौनपुर के प्रबंधक हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष प्रबंध समिति दिलीप श्रीवास्तव एवं प्रधानाचार्य डॉ. सुभाष सिंह की तरफ से देशवासियों को गणतंत्र दिवस एवं बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं*
Ad


*Ad : किसी भी प्रकार के लोन के लिए सम्पर्क करें, कस्टमर केयर नम्बर : 8707026018, अधिकृत — विनोद यादव मो. 8726292670*
Ad


*Ad : देव होम्यो क्योर एण्ड केयर | खानापट्टी (सिकरारा) जौनपुर | डॉ. दुष्यंत कुमार सिंह मो. 8052920000, 9455328836*
Ad



from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/2Zjfh4b

Post a Comment

0 Comments