नया सबेरा नेटवर्क
तीन रुपए वापसी के लिए क्षतिपूर्ति क्लेम - याचिकाकर्ता का जज़्बा नागरिकों के लिए अपने हक की लड़ाई के लिए प्रेरणा स्त्रोत - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत के महापुरुष बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने हक़ की लड़ाई के लिए न्यायालय में जाकर हक मांगने की प्रेरणा दी और हम सब देखते हैं कि, बाबा साहब की उंगली कोर्ट की तरफ उठाकर न्याय का रास्ता दिखाने वाले कई स्वरूप हमने न्यायपालिका के सामने देखे होंगे। परंतु सोचनीय बात है कि, आज भी लाखों-करोड़ों लोगों को न्याय मंदिर से न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया नहीं मालूम। खास करके बात अगर हम उपभोक्ता न्यायालय की करें तो भारत देश में हर जिले में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और हर राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग व राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग बने हुए हैं, जो कि जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपीलों की प्रक्रिया से जाकर न्याय मांगा जा सकता है। बात हिम्मत, जज़्बे और जानकारी की है जिसमें सरकारों द्वारा जनजागरण अभियान चलाकर पूरी जनता के समक्ष लाया जा सकता है। भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के लिए उपभोक्ता संरक्षण( संशोधित) अधिनियम 2019 दिया है। हर प्रतिष्ठान और ऑफिस पर नकेल कसी गई है,बस जरूरत है, नागरिकों, उपभोक्ताओं को इसकी जानकारी होने की। उपभोक्ता फोरम द्वारा ऐसे हजारों लाखों शिकायतों के केस उपभोक्ताओं के हक में निपटाए हैं और क्षतिपूर्ति संबंधित अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज करने वाले प्रतिष्ठानों से दिलाई है। यह वर्तमान केस में भी सुपरमार्केट द्वारा कैरी बैग पर अपनी कंपनी का प्रतीकचिन्ह लगाकर उसके तीन रुपए वसूल किए जा रहेथे याचिकाकर्ता जो एक 21 वर्षीय छात्र है ने इसकी शिकायत जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग हैदराबाद में की और मांग की 3/- रुपए की राशि 12.5 प्रतिशत ब्याज सहित वापसी ₹30 हज़ार की क्षतिपूर्ति, और ₹1 लाख़ लीगल एड में जमा करने की गुहार याचिका में लगाई मामला हैदराबाद जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शुक्रवार दिनांक 19 फरवरी 2021 को आया जहां तीन सदस्यीय बेंच जिसमें श्री वकांती नरसिम्हा राव(अध्यक्ष) श्री पीवीटी आर जवाहर बाबू (सदस्य) व श्रीमती आरएस राजेश्वरी (सदस्य) की पीठ के समक्ष उपभोक्ता केस क्रमांक310/2019 याचिकाकर्ता एक 21 वर्षीय छात्र बनाम एक सुपर मार्केट के रूप में आया जिसमें पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात अपने 10 पृष्ठों के आदेश में कहा कि यदि कंपनी ₹3 चार्ज लगाना चाहती है तो वह कैरी बैग में अपना प्रतीक चिन्ह हटाए और प्रतीक चिन्ह है तो फ्री में कैरी बैग देना होगा और याचिकाकर्ता को 3/रुपए 12% ब्याज के हिसाब से एक जून 2019 से याचिकाकर्ता को देना होगा ₹3 वसूलने के लिए की गई कार्यवाही व क्षति पूर्ति 15 हज़ार और 15 सव प्रोसेसिंग चार्ज 45 दिनों के भीतर देना होगा। ₹1 लाख़ वाली मां बेंच ने खारिज की,आदेश कॉपी के अनुसार कंज्यूमर कोर्ट ने हैदराबाद के 'मोर मेगास्टोर' को भुगतान करने के समय उपभोक्ता पर कैरी बैग (कंपनी के लोगो वाले) का अतिरिक्त चार्ज लगाने के अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस (व्यापार को अनैतिक तरीका) को बंद करने के लिए कहा है। जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, हैदराबाद ने माना है कि उपभोक्ता संरक्षण (संशोधित) 2019 अधिनियम, की धारा 2 (1) (आर) के तहत अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के लिए उपभोक्ता को एक विज्ञापन एजेंट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया सकता है। बेंच ने कहा, प्रतिवादी अपनी कंपनी के प्रतीक चिन्ह वाले प्लास्टिक बैग बेच रहे हैं, जिसके कारण वे अपने विज्ञापन के उपकरण के रूप में शिकायतकर्ताओं का उपयोग कर रहे हैं जो सेवाओं की भ्रामक प्रकृति के अलावा निष्पक्ष व्यापार व्यवहार को अपनाने की बजाय उनको भ्रामक चीज़ों की ओर ले जाता है। ऐसी हरकतों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आयोग कानून के एक 21 वर्षीय द्वारा दायर एक शिकायत पर विचार कर रहा था। आयोग ने बिग बाजार (फ्यूचर रिटेल लिमिटेड) बनाम साहिल डावर मामले में एनसीडीआरसी के एक हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिससे बिग बाजार को कैरी बैग कंपनी के लोगो की अतिरिक्त शुल्क लगाने से रोक दिया गया था। आयोग ने माना है कि भुगतान काउंटर पर कैरी बैग की कीमत का खुलासा करना भी निष्पक्ष ट्रेड प्रैक्टिस के बराबर है। बेंच ने कहा, उपभोक्ता अधिकारों के एक मामले के रूपमें उपभोक्ता को यह जानने का अधिकार है कि कैरी बैग के लिए अतिरिक्त लागत होगी और कैरी बैग के मूक विनिर्देशों (साइलेंट डायरेक्शन) और कीमत को जानने के लिए, इससे पहले कि वह किसी विशेष रिटेल आउटलेट के संरक्षण के लिए अपनी पसंद से निर्णय ले। इससे पहले कि वह उक्त रिटेल आउटलेट से खरीदारी के लिए अपने सामान का चयन करे। एनसीडीआरसी ने कहा कि प्राइमरी नोटिस के बिना भुगतान काउंटर पर कैरी बैग के लिए अतिरिक्त लागत चार्ज करना एक अनुचित व्यापार अभ्यास है। वर्तमान मामले में प्रतिवादी के तरफ़ से पेश अधिवक्ता ने, तर्क दिया कि कैरी बैग लिए 3 रूपये का शुल्क लेना किसी भी कानून के तहत निषिद्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि कंपनी ने कभी भी ग्राहकों को कैरी बैग खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया और कैरी बैग खरीदाना ग्राहकों का अपना फैसला होता है। हालाँकि,आयोग ने शिकायतकर्ता का विवरण निम्नानुसार दर्ज किया - केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के मौजूदा आदेशों के अनुसार,रिटेलरअपनी कंपनी के लोगो का उपयोग किए बिना प्लास्टिक कैरी बैग के लिए शुल्क ले सकता है (मतलब वे सादा कैरी बैग बेचेंगे)। कैरी बैग के साथ अगर किसी भी कंपनी के प्रतीक चिन्ह को बेचा जाता है जिसकी मुफ्तमें आपूर्ति की जानी चाहिए। आयोग ने अब, यदि वह कैरी बैग पर अपनी कंपनी का प्रतीक चिन्ह मुद्रित करते हैं तो कंपनी को सभी ग्राहकों को मुफ्त कैरीबैग उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।हालाँकि, उपभोक्ता की पूर्व सूचना और सहमति से और व्यवसाय परिसर में सुस्पष्ट स्थानों पर सूचना प्रदर्शित करके सादे कैरी बैग के लिए चार्ज किया जा सकता है। आयोग ने कंपनी को निर्देश दिया कि वह कंपनी के प्रतीक चिन्ह वाले कैरी बैग का शुल्क लेने के मुआवजे के तौर पर शिकायतकर्ता को 15 हज़ार रूपये का भुगतान करे।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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