नया सबेरा नेटवर्क
एटम -बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
इंसान फरिश्ता हो न सका,
दिल से दिल न जोड़ सका।
रक़्त से लाल हुई धरा,
क्यों सब्र का बाँध तोड़ दिया?
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
तारों को दर्द हुआ इतना,
सूरज को दर्द हुआ कितना।
चाँद हुआ टुकड़ा-टुकड़ा,
फूलों ने महकना छोड़ दिया।
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
नदिया कितनी मोड़ दिया,
कितना पर्वत तोड़ दिया।
मन अंदर से भरा नहीं,
कितना सिंदूर उजाड़ दिया।
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
कुदरत का चेहरा उतरा,
गम का भी धुआँ पसरा।
खामोश हो गई जो धड़कन,
आवाज लगाना छोड़ दिया।
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
कुदरत हुई है खूब ख़फ़ा,
बरस रही वो मौत हवा।
जुगनू की खुशी जो देख न सका,
कुदरत देखो! फाड़ दिया।
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
अब शरबती चाँदनी आने दे,
प्यार की धूप भी खिलने दे।
कहार था जो डोली के संग,
वो दुल्हन की अस्मत लूट लिया।
एटम-बम का विकास किया,
मानवता क्यों छोड़ दिया?
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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