नया सबेरा नेटवर्क
कुछ दिनों में दुनिया संभल जाएगी,
ये गम की फिजा बदल जाएगी।
छाया है मौसम खिज़ा का यहाँ,
फूल खिलते तबीयत बहल जाएगी।
हँसते - हँसाते कटेगी ज़िन्दगी,
सफीना भंवर से निकल जाएगी।
दफ़न हो जाएंगी ये स्याह रातें,
जवानी इसकी ढल जाएगी।
ये सड़क, वो गाँव, वो पगगंडियां,
मुसाफिरों पे अपने मचल जायेंगी।
पिएंगे भौरें वो जाम नज़रों से,
घुटन भरी जिंदगी बदल जाएगी।
मन के पौधे को उखाड़ो न दोस्तों,
वक़्त आने पे कली खिल जायेंगी।
नागफनी न उगाना दिल में कभी,
आंसुओं से जमीं ये हिल जाएगी।
जब -जब सताओगे पहाड़ों को तू,
कोई गंगा यक़ीनन निकल जाएगी।
संतुलन पर नियंत्रण रख के चलो,
कोई आई समस्या भी टल जाएगी।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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