नया सबेरा नेटवर्क
इस भरी दुनिया में दिल बहलाने कहाँ जाएँ,
सब क़ैद हैं घरों में उससे मिलने कहाँ जाएँ।
इधर बरस रही मौत,उधर पुलिस का है पहरा,
मिले दिल को सुकूँ,वो सुकून पाने कहाँ जाएँ।
जिन्हें पीने की है आदत, मयकदे में जा पीते,
जो नजरों से हैं पीते, वो दीवाने कहाँ जाएँ।
मोहब्बत एक खुशबू है, इन सांसों में देखो!
इस दिल के परिन्दे को समझाने कहाँ जाएँ।
चाहत के ये बादल बरसना ही चाहते हैं,
मगर इस लॉकडाउन में ये बरसने कहाँ जाएँ।
आंसुओं से भींग रही है निशिदिन ये फिजाएँ,
लौटेगा कब मौसम, उसे मनाने कहाँ जाएँ।
पसर चुका है चारों तरफ अब घोर सन्नाटा,
आखिर इन आंसुओं को सुखाने कहाँ जाएँ।
दरिया है प्यासी औ समंदर भी है प्यासा,
तलब अपने प्यास की वो बुझाने कहाँ जाएँ।
रामकेश एम. यादव(कवि, साहित्यकार), मुंबई
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