ओ युग प्रवर्तक!क्रांतिचेता
ओ हठीले!तुझसा होना विरल है।
ओरे "बावरे अहेरी" तूने जमकर
आखेट किया,सड़ी -गली लिजलिजी
पुरातनताओं का।
ओरे निर्भीक!अडिग रहकर
तुमने खंडन किया रूढ़ियों का
कुहरिल मान्यताओं का।
ओरे ओरे मेरे बावरे अहेरी!
तुम्हें शब्दों में समेट पाना
बहुत मुश्किल है।
है मुझमें इतनी सामर्थ्य कहां।
ओ मेरे बावरे अहेरी! तूने दी है
साहित्य जगत को नयी
टटकी वैचारिकी।
दिया है सूरज सा अद्भुत दान
निछावर किया है तूने
तन-मन-धन प्राण।
ओ अद्भुत योद्धा! तुम लड़ते रहे
निरंतर, कई कई युद्ध कई-कई
मोर्चों पर।
एक साथ क्या बात एक साथ।
तुम रचते रहे बनाते रहे गढ़ते रहे
"भग्नदूत ", "चिंता", "इत्यलम"
सब एक से बढ़कर एक
ज़रा भी न कोई कम।
कभी तुम कहते "इन्द्र धनु रौंदे हुए ये"
कभी पुकारते "अरी ओ करुणा प्रभामय" तो कभी कहते "आंगन
के पार द्वार"
ओरे मेरे बावरे अहेरी!पार नहीं
तेरा सृजन है अपार।
"सुनहले शैवाल" लिखते, फिर
"कितनी नावों में कितनी बार"।
फिर कहते "क्योंकि मैं उसे जानता हूं",
"महावृक्ष के नीचे" खड़ा है मेरा
बावरा अहेरी और फिर खो जाता है
प्रकृति की अनंत नीलिमा में।
ओ "सप्तक" के प्रणेता!
अद्भुत यायावर थे तुम।
इस संसृति से हंसकर हुलसकर
पूछा तुमने "अरे यायावर रहेगा याद"
ओ अद्भुत कथाकार!"शेखर
एक जीवनी" के नायक तुम
जगमग करते रहे "नदी के द्वीप को"
फिर भी बने रहे"अपने अपने अजनबी"
की तरह।
ओ असाध्य वीणा के अद्भुत साधक!
खूब साधी तुमने साहित्य वीणा।
"ओ उत्तर प्रियदर्शी"! तुमने कहा
"पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं" अद्भुत
हे महामनीषी ! तुम सदा बसे हो
स्मृतियों में,मनुजता और प्रेम
सिखाते हुए और यह पूछते हुए
"अरे यायावर रहेगा याद"
ओ अज्ञेय! कहां समझा है
साहित्य जगत तुमको क्योंकि
तुम मात्र साहित्यिक न थे।
तुम थे पूरी की पूरी एक दिव्यरूप
संस्था। सादर समर्पित है तुम्हें
हम हिंदी जनों की आस्था।
तुम रचते रहे सदा नव-नव छंद ललाम
ओ दिव्य यायावर !
तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम।
स्वरचित, मौलिक
डॉ मधु पाठक
राजा श्रीकृष्ण दत्त
पी.जी.कॉलेज , जौनपुर
उत्तर प्रदेश।
0 Comments