नया सबेरा नेटवर्क
पोंछकर अश्क़ अब मुस्कुराओ,
बुझ चुके हैं, वो दीये जलाओ।
मौत बनकर जो छाया अंधेरा,
सूरज नया कोई बनकर छाओ।
दुःख सहोगे आखिर कहाँ तक,
बैठकर ऐसे मातम न मनाओ।
नहीं टिका कोई मौसम जमीं पे,
गम के पर्दे से बाहर तो आओ।
ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं,
ऐसी ख्वाहिश पे लगाम लगाओ।
दो गज जमीं,दो गज कफन मिले,
बाकी की हसरतें तू भूल जाओ।
सज जाएगी अपनी फूल-सी धरा ,
हाय तौबा अब न इतना मचाओ।
बनाओ दिल को ऐसा फौलादी,
कुदरत के चरणों में सो जाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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