नया सबेरा नेटवर्क
कमाने के लिए निकलना पड़ता है,
रुखा-सूखा खाकर रहना पड़ता है।
दुश्मनों की दुश्मनी से क्या खतरा,
नजर अपनों पर रखना पड़ता है।
हौसला है जब,आदमी नहीं थकता,
हिम्मत हारने पर ठहरना पड़ता है।
आसमान में कौन टिक पाया है,
बुलंदियों से उतरना पड़ता है।
चराग सिर्फ अँधेरे से नहीं लड़ता,
आँधियों से भी लड़ना पड़ता है।
नया कपड़ा एक दिन फट जाता है,
साँस को ये तन छोड़ना पड़ता है।
ख्वाब रात को आते हैं सीने में,
जिंदगी को दिन में लड़ना पड़ता है।
हड़प लो किसी का भी खेत-खलिहान,
चिता पर अकेले जलना पड़ता है।
रामकेश एम यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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